हाय री जाति

15-09-2024

हाय री जाति

रितेश इंद्राश (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

उसे मेरा सब कुछ पसंद था
बस साथ नहीं रहना था
 
उसे सब कुछ मेरे जैसा चाहिए था
बस मैं नहीं चाहिए था
 
वही जाने मुझमें क्या कमी थी
सब कुछ सही होकर मैं नहीं चाहिए था
 
शायद जाति मेरी अलग थी
हाय री जाति जो कि जाती ही नहीं
 
मेरा हँसना, रोना, चलना उसे पसंद था
उम्र में बड़ी थी शायद यह वजह थी
 
न वादा किया न वादा निभाया
सब कुछ होकर भूखा सुलाया
 
ना तो प्यार किया ना ही जताया
ना पास आई ना गले से लगाया 
 
बस बातें की मन बहलाया
ना वादा किया ना ही निभाया। 

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