अनजान शहर
रितेश इंद्राश
अनजान शहर ये अनजान गलियाँ
मैं मुसाफ़िर इस शहर से अनजान
यहाँ की झूठी हँसी झूठी मुस्कान
सँकरी गलियाँ न जान न पहचान
न किसी का मान न सम्मान
फिर भी ख़ुद को कहते हैं इन्सान
मैं मुसाफ़िर इस शहर से अनजान
चारों तरफ़ धुआँ धुआँ और शोर
जिधर देखो भागती गाड़ियाँ भागते लोग
हाथों में बैग कानों में लगाए हेडफोन
दिखते जीवित मगर सभी बेजान लोग
मैं मुसाफ़िर इस शहर से अनजान।