रितेश इंद्राश – क्षणिकाएँ – 001
रितेश इंद्राशरितेश इंद्राश – क्षणिकाएँ – 001
रितेश इंद्राश
1.
औरत, मर्द से अच्छी दोस्त
हो सकती है
यदि पुरुष
हवस का चश्मा उतार दे।
2.
हार होने पर भी ख़ुद को
जीता हुआ महसूस कराना चाहिए
हार होती नहीं किसी की
मन से मान लेना ही हार है।
3.
मेरे हिस्से का जुर्म मेरी
माँ सह रही है
बेरोज़गार मैं हूँ
ताने माँ सह रही है।
4.
भाई कुंभकर्ण जैसा होना चाहिए
जो कष्ट पड़ने पर
नीति और नियम की बात न करें
साथ दे
आज तो विभीषण हर घर में है।
5.
गुप्तांगों को दिखाने से कोई आधुनिक
नहीं बन जाता
शताब्दियों पहले हमारे पूर्वज
मजबूरी में दिखाया
करते थे।
6.
युद्ध में हार जीत तो
होती है
पर अपने ही धोखा दे
तो बड़े से बड़े योद्धा टूट जाते हैं।
7.
चरित्र और आत्मसम्मान से बड़ा धन
कुछ भी नहीं
पुरुष और स्त्री दोनों को इसे
सँजोना चाहिए
इन दो के अलावा कुछ भी ख़रीदा जा
सकता है।
8.
एक स्त्री की ताक़त!
पुरुष ही श्रेष्ठ की सोच रखने वाले
कैसे भूल जाते हैं
कि तुम जैसे मर्द को एक स्त्री
नव महीने कोख में ढोती है।
9.
आज का कलयुगी मनुष्य
दो मुँहा साँप हो गया है
पता ही नहीं चलता
कौन अपना है कौन पराया।
10.
उम्र पच्चीस के बाद!
बेरोज़गार लड़के और
बिन शादी की लड़कियाँ
रास्ते पर कहाँ चलते हैं
ये समाज के छाती पर चलते हैं
पूरा समाज दुश्मन बन जाता है
न जानें कौन सा जुर्म होता है इनसे।
11.
हम हिंदू कहाँ हैं?
हम तो यादव हैं पण्डित हैं कुर्मी हैं
ठाकुर हैं चमार हैं बनिया हैं
राजनीति को अपनी रखैल समझने वालों
ने हमें हिंदू कहाँ रहने दिया।
12.
पड़ोसी और रिश्तेदार बवासीर
के समान है
जो रह-रह कर उभरा करते हैं
13.
घर वाले जिस दिन कुंडली से अधिक
विचारों के मिलने पर ध्यान देंगे
उस दिन से बेटे नहीं बेटियाँ
खोजी जाएँगी
तब न कोई दहेज़ लेगा न बेटियाँ बेघर होंगी।
14.
पढ़ते पढ़ते इतना पढ़ लिए
छोटे सम्मान नहीं करते,
बड़े अपमान करते हैं
सरकार मस्त है धर्म जाति से वोट भुनाने में
और हम युवा मिट्टी के ढेले हो गए है
जो चाहें फोड़ कर चला जाए।
15.
मर्यादा में रहने वाली स्त्री
और
अपनी पत्नी से संतुष्ट पुरुष
दोनों का जीवन
सुखमय होता है।
16
बच्चे दहलीज़ें लाँघ कर
सब कुछ लुटा देते है
थोड़ा आधुनिकता के चक्कर में
सब कुछ मिटा देते है।
17.
कैसे हो की जगह
क्या करते हो लोग पूछने लगें
तो समझ जाना कि
तुम बड़े हो चुके हो और समाज के
नज़र में चुभने लगे हो।
18.
जिस दिन मैं अपने पिता जैसा
पिता बन जाऊँगा
उस दिन मैं ख़ुद को सफल समझूँगा
क्यों कि मेरे पिता सबसे अच्छे पिता हैं।
19.
जितना सुकून तुम्हारे रहने पर था
उससे दस गुना सुकून
तुम्हारे न रहने पर है।
20.
मर्द को सुनती हुई स्त्री
अच्छी लगती है
मगर कहती हुई नहीं
कैसा समाज हमने बनाया है
स्त्री को हर वक़्त दबाया है।