सिलवटें
कविता गुप्ता
देखती हूँ सिलवटें ही सिलवटें,
बिछौने पर पड़ी, ख़ुद निकालूँ,
तन की निकालता 'सलाहकार'
मनःस्थिति का, कोई चमत्कार।
धरती पर सिलवट! हाहाकार,
व्योम टिका रहे, ख़ुश बेशुमार।
कैसी भी हों, कहलाए मुसीबत
इन्हें निकालता, 'एक मददगार'।
हवा स्वतंत्र, सहती न सिलवट,
ज़िन्दगी अधूरी है! बिना करवट।
यदि जीतना, दुर्गम लक्ष्य चाहो,
साहस से लाँघ लो, हर रुकावट।
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