हादसा–06– सफ़ाई
कविता गुप्ता
कन्या भ्रूण हत्या का अगला हादसा क़रीबी रिश्ते में ब्याही बेटी वर्ष बाद जब ‘ख़ुशख़बरी’ देने को मायके आई तो सभी के मुँह से एक ही बात सुनने को मिली “भगवान पहली ही बार ‘अच्छी’ चीज़ दे दे तो बढ़िया . . . रहेगा।” यह कैसी सोच? ख़ैर समय आने पर नन्ही गुड़िया ने दस्तक दी (जो अभी-अभी ख़ुद एक गुड़िया की माँ बनी है) उसे परितोष समझ स्वीकारा । सुंदर-सा नाम दिया जो बनता था। वह नन्ही बच्ची को लेकर वापस लौटी फिर कुछ महीने बाद जब नई ख़ुशख़बरी आई तो कानों-कान किसी को ख़बर न देकर टैस्ट करवाया बेटी थी; अबॉर्ट करवा दी, सुख की साँस ली। बेटी जब मायके आई तो अपनी माँ को बताया जो लोगों को यह कह ख़ुशी प्रकट कर रही थी कि मेरी बेटी की कोख में फिर बेटी थी, जिसकी ‘सफ़ाई’ करवा कर आई है। छुटकारा मिला। जब मैंने सुना सोच में पड़ गई कैसी सफ़ाई? किसकी सफ़ाई? यह शब्द इतनी सफ़ाई से बोला गया जो आज भी कानों में गूँज रहा है । उफ़! घिनौना अपराध।
तीन वर्ष बाद पुनः ‘ख़बर’ आने पर टैस्ट नहीं करवाया। लक्ष्मी ने आना ही था, आ गई। जैसे-तैसे स्वीकार किया लेकिन मन तो भारी था ही। मैंने उसे सुंदर-सा नाम दिया। सिलसिला आगे बढ़ा, चक्रव्यूह में घिरी बेटी फिर ख़बर देने वाली थी। इस बार टैस्ट करवाने में कोई चूक नहीं की। जब पता चला सौभाग्य से बेटा है, माँ के अतिरिक्त सभी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वास्तव में माँ सहमी हुई थी। डिलीवरी हुई, जब तक उसने ‘साक्षात’ देख नहीं लिया विश्वास नहीं हुआ। बधाइयाँ बजीं। मुझे वह अवसर आज भी याद है। दादा, नाना के घर पार्टी की रौनक़ का माहौल बन गया।
एक राजकुमार के आगमन सा जश्न मनाया गया, स्वाभाविक था। मुबारकों की झड़ी-सी लग गई।
परन्तु मुझे बड़े खेद से लिखना पड़ रहा है कि उसी बेटी तथा उसके पति ने बड़े थोड़े समय के अंतराल में एक और कन्या, जिसका टैस्ट करवाया गया था को घर से ‘जबरन विदाई’ दे दी थी। जैसे-जैसे मेरी क़लम चल रही है आँखों के आगे सारा हादसा ऐसे घूम रहा है जो मुझ से कई चाहे, अनचाहे प्रश्न पूछ रहा है और मैं सिर झुकाए बेहद शर्मसार। कारण औरत हूँ और रक्त में अपराधी की कोई क़रीबी रिश्तेदार। आज वर्षों . . . बीत जाने के बाद भी वह दो अध्जन्मी कन्याएँ मुझे कभी-कभार झकझोर ही जाती हैं। ईश्वर व् पाठक मुझे क्षमा करेंगे।
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