हादसा–08– कहीं श्राप तो नहीं?

30-11-2014

हादसा–08– कहीं श्राप तो नहीं?

कविता गुप्ता

 

कन्या भ्रूण हत्या का अगला हादसा विदेश की धरती से साझा करती हूँ। वैसे भारत भूमि (पंजाब) से ही अनेकों ऐसे दर्द विदारक हादसे हृदय की किसी कोने में संचित हुए पड़े हैं। चर्चा करती रहूँगी। 

सन्‌ 2005 में जब मैं पहली बार विदेश आई तो बच्चों ने बताया कि यहाँ अभी ऐसी कोई ‘बीमारी’ सुनने में नहीं आ रही। जान कर प्रसन्नता हुई। जैसे कोई नज़र ही लग गई। दूसरे ही वर्ष एक हादसे ने अंदर तक हिला कर रख दिया जिसके ज़ख़्म अभी भी रिस रहे हैं। 

नज़दीकी रिश्ते में सम्पन्न दम्पत्ति जिनके सचमुच राजकुमारी-सी दो बेटियाँ। पास से देखा, दिल चाहे देखते ही जाएँ। इसके अतिरिक्त कई गुणों का संग्रह एक ही सुंदर काया में। नृत्य, पढ़ाई, पेंटिंग . . . आदि, भाव कि सब कुछ सुंदर। न जाने कब एक नए जीव ने दस्तक दे दी। संतुष्ट गृहस्थ जीवन में उथल-पुथल मच गई। बहुत से प्रश्न उठ खड़े हुए। 

तीसरी बेटी? या बेटा? कौन बताए? किस से पूछें? कहाँ जाएँ? परन्तु सब प्रश्नों का हल बड़ी जल्दी मिल गया। कुछ महीने ऐसे ही बीत गए। मेरे दिमाग़ से ही निकल गया कि उसके यहाँ से ख़बर आने वाली थी। 

एक दिन बैठे-बैठे जैसे ही उसका ध्यान आया मैंने बहू से पूछा, “क्या ख़बर है नवरीत के घर से? अब तक तो अच्छी ख़बर आ चुकी होगी?” 

बहू चौंकी! घबराई सी बोली, “उसने टैस्ट करवाया था, फिर बेटी थी, अबोर्ट करवा दी, यह तो पुरानी बात हो गई। आपको मैंने बताया नहीं?” 

इतना बड़ा वाक्य वह भी एक ही साँस में, मेरे हृदय को चीरता . . . चला गया। उसकी फूल-सी बेटियाँ आँखों के आगे घूम गईं। तीसरी धूल में मिली ने मुझे व्यथित कर दिया। बेटे का वह वाक्य माँ यह ‘बीमारी’ अभी इधर नहीं है, मुँह चिढ़ाने लगा। मैं उल्ट कर कुछ भी पूछने के लिए ख़ुद को तैयार न कर सकी। हाँ इस बात की मुहर ज़रूर लग गई कि अब विदेश में भी यह ‘धंधा’ चल निकला है . . . ख़ुदा ख़ैर करे। 

लगभग छह महीने हुए मेरे कानों ने जब यह ख़बर सुनी कि नवरीत (काल्पनिक नाम) के पति को कैंसर जैसे भयंकर रोग ने बुरी तरह घेर लिया है तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई। यहाँ तक की डॉक्टरों ने लगभग जवाब ही दे दिया है तो सम्पन्न परिवार की ख़ुशियों को लगे ग्रहण ने विचलित कर दिया। क्या होगा इस फुलवाड़ी और मालिन का जब माली तो ‘विदाई’ की तैयारी में है? यह कहीं उस अध्जन्मी कन्या का श्राप तो नहीं? जिसे मिल कर योजना से ज़बरदस्ती ‘देश निकाला’ दिया गया था, अब परिणाम तो भुगतना ही पड़ेगा। 

पिछले दिनों पता चला कि हरदीप (काल्पनिक नाम) को भारत लेकर गए हैं किसी हकीम की तसल्ली पर कि वह जड़ी, बूटियों की सहायता से जादुई करिश्मा कर सकता है? भाग्य की बात है, “निर्णायक', निर्णय क्या करता है? वही जानता है। पर काश! अभी भी हम जाग जाएँ? 

तो समझो सवेरा नहीं तो अन्धेरा . . . ही अँधेरा!

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