आज़ादी की एक और वर्षगाँठ

18-08-2014

आज़ादी की एक और वर्षगाँठ

कविता गुप्ता

 

देखा, एक और वर्षगाँठ आज़ादी की गई मनाई, 
बीते, वर्तमान, कुछ आने वाले की, बातें बताई। 
फिर शहीदों के बुतों पर नई मालाएँ गई पहनाई, 
'गरजते शब्द' सार गर्भित थे, आवाज़ें दी सुनाई। 
 
रण बाँकुरों को है, कोटि 2 नमन, गाथाएँ, दुहराई, 
बेटियों की सुरक्षा! क़त्ल? क़ीमत गई समझाई। 
अनेकों तिरंगें लहराए गगन में, जिस पर गर्व है, 
क्या जानते हो? कितनी सच्ची क़समें गई खाई। 
 
काश! घातक, बहते नशे का, दरिया ही सूख जाए, 
हरियाली लहलहाए, हर तरफ़ ख़ुशहाली दे दिखाई। 
दूर॥बैठे जन्म भूमि के कारण, भावुक से हो जाते, 
महँगाई का मुँह खुलता गया, निर्धन पर बन आई। 

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