काश!! ऐसा करें
कविता गुप्ता
उजड़ी बस्तियों, बिना छत के घरों का,
आओ! हम मिल कर, मुआयना करेंl
दीयों में तेल बाती, मन में नई चेतना,
कृशकाय तन में, ग़ज़ब की शक्ति भरेंl
सिसकियों की धुनों, बाज़ू के तकिए में,
स्वर सुकून का, नींद चैन की, हवा भरें।
नए लगते, कोने में रखी गाँठ से लेकर
ढाँप आएँ चीथड़ों में लिपटे, बदन उधड़े।
कल किस ने देखा, शायद हमारा न हो,
बाज़ी जीवन की, हारों का, सम्बल बनेl
मायूस होता मन, कई तस्वीरें देख कर
काश! पुरुषार्थ से, चटक रंग उनमें भरेl
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