हादसा–05– ऐसे लोग कैसे जीते हैं?

17-09-2014

हादसा–05– ऐसे लोग कैसे जीते हैं?

कविता गुप्ता

 

बड़े दो भाई, तीन छोटी बहनें भरा-पूरा परिवार। बड़े बेटे की शादी हुई, बहू की गोद में बेटा। छोटे की शादी हुई, बहू के बेटी, परिवार ख़ुश। छोटी बहू के दुबारा पाँव भारी हुए टैस्ट करवाया फिर बेटी, चुपचाप गए और गर्भपात करवा दिया। अपराध कर लिया लेकिन कभी-कभी सपने में आकर बेटी पूछती, “माँ मेरा क़ुसूर क्या था?” कई बार माँ को भी नींद से जाग-जाग पश्चाताप की अग्नि में जलना पड़ता परन्तु समय निकला हाथ नहीं आताl फिर मियाँ बीबी ने किसी ‘सूझवान लूटेरे’ तथा कथित पंडित की शरण ली जिसने डंके की चोट पर कहा कि इस बार बेटा ही होगा। फिर क्या शुरू हो गया कई . . . तरह का सिलसिला। दंपती को भी पूरा यक़ीन हो गया अपनी मुराद पूरी होने का। दिन चढ़ते, ढलते गए कहने का भाव कि नन्ही जान का दुनिया में स्वागत का सारा साजो-सामान तैयार हो रहा था। मन में उठ रही ख़ुशियों का अनुमान लगाना किसी के वश का रोग नहीं था। 

आख़िर बहू ने प्रसव पीड़ा का संकेत दिया तो गाड़ी निकालीl अपनी तमन्ना का शृंगार करने उसी बड़े शहर के अस्पताल की ओर यहाँ से बहू की तमाम देखभाल होती रही थी। काल्पनिक ख़ुशी के कारण एक बार तो कार असंतुलित भी हो गई। ख़ैर, क़हर की रात और बिजली-सी ख़बर मिली रजनी के बेटी हुई है, सुनील (पति) का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर। दीवार से सिर टकराने लगा यह कहते हुए “पंडित को ज़िन्दा नहीं छोड़ूँगा” पत्नी से नाराज़, बेटी को देखने से स्पष्ट मनाहीl अस्पताल से छुट्टी मिली घर आ गए। ऐसे लग रहा था जैसे इस में परिवार के सभी सदस्य गुनहगार हैं। 

थोड़े दिन बीते न जाने कैसा करिश्मा हुआ, ऑफ़िस जाने से पहले सुनील नन्ही बेटी के पाँवों में गिर कर ज़ार-ज़ार रोते हुए क्षमा माँगने लगा, उसने क्या कुछ लम्बा-चौड़ा कहा था मुझे बिल्कुल याद है। यह एक दिन का नहीं लगभग रोज़ का ही काम था। यूँ कहें बेटी को धिक्कारने के दाग़ को धोने का प्रयास कर रहा था। एक दिन तो भावुक हो कर यह भी कह दिया “शायद तेरे कारण ही हम कार दुर्घटना से बाल-बाल बचे थे जिस दिन तुमने अपने आने की दस्तक दी थी, अन्यथा कुछ भी हो सकता थाl उफ़! मुझे खेद से लिखना पड़ रहा है तीन वर्ष बाद मेरे कानों में फिर ख़बर पड़ी कि रजनी फिर से ‘खुशख़बरी’ से थी लेकिन टैस्ट की रिपोर्ट ने फिर अपराध तथा नन्ही कंजक को नरक में धकेला है। तौबा! यह कैसे मुखौटे, आडंबर, झूठे दिखावे मात्र हैं मुझे समझ नहीं आया। कन्या भ्रूण हत्या करके लोग कैसे जीते हैं? 

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