बेटी बचाओ दिवस
कविता गुप्ता
राष्ट्र के मुखिया की नींद टूटी,
तो बेटी बचाओ का याद आया।
शायद जो निकल गई हाथों से,
जन्नत से उनका संदेश आया।
कारण, मानव का अधूरा चोला,
'तेज़ औज़ारों' से कुतर दिखाया।
बिखरे उनके सब ख़्वाब रह गए,
जागी करुणा तभी ध्यान आया।
किलकारी बदल गई क्रंदन में,
सभी बधिर, कोई सुन न पाया।
नया अनुसंधान अभिशाप बना,
बेटी पर ही क्यों ऐसा क़हर ढाया?
मुबारक! शुक्रिया जो नींद टूटी,
भावी जननी पर है रहम आया।
ऐसी सोच पर कड़ा प्रतिबंध लगे
जो नन्ही जान को 'जब्री' सुलाया।
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