पिता जी के हाथ से बर्फी का डिब्बा 

02-04-2014

पिता जी के हाथ से बर्फी का डिब्बा 

कविता गुप्ता

 

सन्‌ 1960 में पिता जी को 250 रुपये प्रतिमाह से बढ़ कर जब 300 प्रतिमाह की नई नौकरी मिली तो घर में अजीबो-ग़रीब ख़ुशी की लहर दौड़ गई। ऐसी बात नहीं, पहले भी घर गृहस्थी का ले-दे कर अच्छा निर्वाह हो रहा था, लेकिन इस महीने 50 रुपये और ज़्यादा . . . वाह कमाल तरक़्क़ी! इसके साथ एक और बड़ी बात कि उन्हें दो नए सूट, यानी आधी बाज़ू की सिंथेटिक्स शर्ट्स साथ में पैंट जब मिली तो सोने पे सुहाग हो गया। खद्दर की क़मीज़ के साथ सफ़ेद पजामा छोड़ जब उन्होंने यह नई पोशाक पहनी तो उनका बाहरी व्यक्तित्व ग़ज़ब का निखर आया। परन्तु उन्होंने पगड़ी से प्यार पूर्व की भाँति बनाए रखा जो आख़िर दम तक उनकी पहचान, शान व मान रहा। 

पहले दिन जब पिता जी ने यह परिधान पहना, माँ की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वह मन ही मन सोच रही थी कि ईश्वर का कैसे, किन शब्दों में धन्यवाद करूँ कि समय ने सुखद करवट ली है। पिता जी से डरते संकुचाते हुए कहा, “यदि आप बुरा न मनाएँ तो आज आप एक बर्फी का डिब्बा ले आना और वह भी नानू मल हलवाई का।” यह मशहूर दुकान भारत के पंजाब प्रांत के लुधियाना शहर में थीl अब मुझे पता नहीं आजकल यह दुकान वहाँ है या नहीं? परन्तु उस दिन पिता जी के लिए माँ का एक एक शब्द सत्य वचन लगा था जिसे उन्होंने सहृदय स्वीकारा। 

मुझे इशारे से जब साथ चलने को कहा मैंने भी एक मिनट में घिसी चप्पल डाली और पिता जी से दो क़दम पीछे रहते, बर्फी का मीठा स्वाद मुँह में लिए चल पड़ी। कई बार सोचती हूँ हम तीनों बहनों में पिता जी ने मुझे ही . . . क्यों इशारा किया? कारण स्पष्ट कि सेहत के मामले में अच्छी ख़ासी! वापिसी में पैदल बर्फी का डिब्बा उठा ही लाऊँगी, शायद इसलिए . . . ख़ैर, हलवाई की दुकान पर पहुँचते ही पिता जी ने बर्फी लेने का अपना मन बताया। विश्वास करें . . . मुझे यह क़तई याद नहीं कि उन्होंने कितनी बर्फी का आदेश दिया और कितने पैसे दिए थे? लेकिन यह कभी . . . नहीं भूलता जैसे ही उन्होंने पैसे देने के लिए बाईं जेब में सौ-सौ के तीन बड़े नोटों में से एक निकालने के लिए हाथ डाला तो चेहरे का रंग एकदम उड़ गया, जेब में नोट नहीं थेl वास्तव में पिता जी ख़ुशी में भूल गए थे कि बाईं जेब में नहीं 'बड़े नोट' दाईं जेब में थे। जब दूसरी जेब में नोटों को छूआ तो उखड़ी साँस लौट आई। उन्होंने एक नोट हलवाई की ओर बढ़ाया वह भी नोट को उल्टा पलटा कर उसकी जाँच-पड़ताल करने लगा। अपने मुँह में मीठा पानी लिए मैं वह बर्फी जब घर लेकर आई उसका स्वाद आज भी भूला नहीं। एक-एक टुकड़ा हिस्से आया लेकिन एक कर्मठ, संघर्षशील . . . ईमानदार पिता का उस दिन का यह परितोष वर्षों . . . तक भुलाए नहीं भूलेगा। ऐसे माता पिता को कोटि-कोटि नमन हैl

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