श्वान कुनबे का लॉक-डाउन को कोटिशः धन्यवाद
सुदर्शन कुमार सोनीहम श्वान कुनबे के सभी तरह की पूँछों के धारी आज सामने लॉक-डाउन और पीठ पीछे कोरोना को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं कि आप की दया-धर्म के चलते देश में तीन सप्ताह का पूर्ण लॉक-डाउन सफलतापूर्वक चल रहा है। हाँ हम जानते हैं कि जब लॉकडाउन चलता है तो बाक़ी सब कुछ स्थिर हो जाता है।
लॉक-डाउन से मनुष्यों को ज़रूर नाना तरह की परेशानियों के समाचार आते रहे हैं। एक जगह एक महिला तीन दिन से भूखी थी। जब पुलिस ने खाने का पैकेट उसे दिया तो उसकी आँखों में आँसू पहले आये और मुँह में लार बाद में! यहाँ हम होते तो पहले मुँह में लार आती आँसू बाद में कभी गिरा लेते; वहीं गर्ल फ़्रैंड के किसी और के साथ पींगे बढ़ाने पर! हम लोग भी बहुत भूखे इन दिनों रहे हैं लेकिन फिर भी हमने उफ़्फ़ यानि मरियल आवाज़ में भौं भौं तक नहीं की! पुलिस व सेवाभावी व्यक्तियों से निवेदन है कि वो जब खाने के पैकेट मनुष्यों को बाँटे तो उनके आसपास रहने वाले श्वान का भी ध्यान कर लिया करें। और हम तो अपनी क्या, गाय और बकरियों की ओर से भी पैरवी कर रहे हैं। हम अपनी बात पर आने के पूर्व कुत्तेपने की बात करना चाहेंगे। हाँ विश्वास करें कुत्तापन हमारी बात बिल्कुल भी नहीं है! कोरोना के समय मनुष्यों का कुत्तापन रोज़ नये-नये रूपों में सामने आया। कभी इंदौर में स्वास्थ्य कर्मियों पर हमले के रूप में तो कभी दिल्ली में कोई जमातियों द्वारा अस्पताल में थूकने, नर्सेस के साथ बदसुलूकी के रूप में, तो कहीं आवश्यक वस्तुओं की कालाबाज़ारी के रूप में असंख्य उदाहारण हैं। हम यह बिल्कुल डंके की चोट पर कहना चाहते हैं कि मनुष्य का कुत्तापना बहुरूपिया है। यह किसी भी रूप में हो सकता है जबकि हमारा जो है वो बस न्यूनतम आवश्यकता वाला, हड्डी या रोटी के झगडे़ या फिर गर्ल फ़्रैंड वाले मामले में सामने आता है। हमारा कुत्तापन एक लिमिटेड वर्ज़न वाला है। लेकिन मनुष्य का तो अनन्त वर्ज़न वाला है। आशा है ऊपर के उदाहरण आपकी समझ के लिये पर्याप्त हैं।
ख़ैर मनुष्य के कुत्तेपने की ज़्यादा बात करके हम अपनी वफ़ादारी, अनुशासन, बुद्विमत्ता रूपी इंसानपन में दाग़ नहीं लगाना चाहते। हम इस पर ज़्यादा प्रकाश डालेंगे तो एक पूरा ग्रंथ रच जायेगा जिसकी इस लॉक-डाउन के समय में अभी हमारी कोई इच्छा नहीं है। वैसे इस समय रचनाकार लोग बडे़ प्रसन्न हैं; उनकी रचनायें चाहे वो कवि हों, गद्यलेखक हों, कहानीकार हों, ग़ज़लकार हों, कोरोना से शुरू होकर उसी पर समाप्त हो रही हैं। वे लॉक-डाउन का लॉक खुलने पर रचना सुनाने टूट पड़ेंगे। ऐ भाई ज़रा सँभल के रहना!
हाँ! आज हम यह बताना चाहते हैं कि एक मुहावरा है ’कुत्ते की मौत मरना’। इसकी जितनी निंदा की जाये नाकाफ़ी होगा। हम इस अपमानकारी मुहावरे के लिये मनुष्यों को कभी माफ़ी नहीं दे पायेंगे। ’कुत्ते की मौत मरना’ क्या मायने हैं...? अरे भाई सड़क चिकनी चमेली जैसी आपने बनाई, डेढ़ सौ किलोमीटर की रफ़्तार से दौड़ने वाले वाहन आपने बनाये! अब आपके इस वाहन की रफ़्तार के सामने कोई हमारी दौड़ने की रफ़्तार कौन उसी दर से बढ़ गयी तो। नतीजा रोज़ सामने है। हमारे सैकड़ों साथी सड़क दुर्घटना में असमय काल के गाल में समा जाते हैं। और इसे मनुष्यों ने ’कुत्ते की मौत मरना’, ’साले कुत्ते की मौत मरेगा’ करके संबोधित करना शुरू कर दिया। सड़क दुर्घटना में हमारा कोई साथी मरते समय जैसी पीडा़ महसूस करता है उससे कहीं कम इस मुहावरे के सुनने पर हमें नहीं महसूस होती। सड़क दुर्घटना में हमारी अंतड़ियाँ बाहर आ जाती हैं और ये मुहावरा सुनकर भी वमन सा लगता है और कलेजा मुँह को आ जाता है।
पिछले तीन सप्ताह से जारी लॉक-डाउन के कारण सड़क पर वाहनों का ज़ोर नहीं, पुलिस के डंडे का ज़ोर है। कोई फ़ालतू फ़ंड का शोर भी नहीं। शोर प्रदूषण के अभाव के चलते पहली बार जीवन में चिड़ियों की मनमोहक चहक सही ढंग से सुन पाये।
हम लोग अपने-अपने नुक्कड़ व गलियों पर के स्थानों पर मस्ती से सोते रहे हैं। सड़क ऐसी शांत कि कोई खलल नींद में नहीं, कोई अवे-तवे की भावना से दुत्कारने पत्थर मारने वाला नहीं। और इतने दिनों में हमारी रिर्पोट के अनुसार एक भी स्थान से किसी श्वान के ’कुत्ते की मौत’ हाँ आपके ही शब्दों में कहता हूँ मरने का समाचार नहीं आया है! सुखद स्थिति।
तो हम तो अपनी पूँछ ऑफ़ (नीचे कर) कर लॉक-डाउन का समर्थन करते हैं और बल्कि सरकार से माँग करते हैं कि हमारी नहीं- इस मनुष्य की सुरक्षा के मद्देनज़र अभी लॉक- डाउन न खोला जाये और यदि खोलना आवश्यक भी हो तो कुछ शर्तों के साथ। उसमें एक शर्त यह भी हो कि ज़्यादा वाहन बाहर नहीं आयेंगे और कोई भी वाहन तेज़ गति से नहीं चलाया जायेगा। लॉक-डाउन की ही तरह ऐसे समय भी कोई कुत्ता फिर आपके ही शब्दों में (वैसे हमें शर्मनाक लगता है यह कहना) ’कुत्ते की मौत’ नहीं मरना चाहिये।
सभी को पूँछ सलाम (पाँच कुत्ते खडे़ होकर पूँछ को दायें बायें लहराते हैं) के साथ पूरे अवाम की सलामती के लिये सिर ऊपर कर ऊ... ऊ... ऊ....! कर अपने-अपने ठिये को चल देते हैं।
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