नोटों का कार्य जलना नहीं जलाना है!
सुदर्शन कुमार सोनी
दिल्ली में एक न्यायधीश महोदय के बँगले में आग लगने पर फ़ायर ब्रिगेड को बुलाया गया। जब इसने आग पर क़ाबू पाया तो कई बोरियों में अधजले नोट पाए गए। जज साहब का कहना है कि हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को तो दूसरे दिन ऐसे कोई नोट नहीं मिले। फिर उनका कहना था कि जहाँ ये घटना हुई उस जगह को एक अलग दीवार उनके बँगले से अलग करती है। दिल्ली पुलिस भी ग़ज़ब की है इसने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश को इसका वीडियो भेज दिया। वहाँ और ग़ज़ब हुआ वीडियो पब्लिक डोमेन में डाल दिया गया। अब जितने मुँह उतनी बातें। लेकिन एक बात तो है कि जहाँ आग लगती है वहीं धुआँ उठता है। ये धुआँ कोई ऐसा-वैसा धुआँ नहीं बोरियों में भरे रहस्यमय नोटों पर लगी आग का धुआँ है। नोटों पर तो बिना माचिस लगाए आग नोटबंदी में भी लगी थी ऐसी कि लोग स्वेच्छा से जलाने तैयार हो गए थे। बहुतों ने ‘ओम रुपया नमः स्वाहा’ की सहस्त्र आहुतियाँ दी थीं। इस दौरान जन धन योजना के खाते बडे़ काम आए थे। सरकार ने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि उसकी ड्रीम योजना के खातों में उससे ज़्यादा डीबीटी काली कमाई वाले करेंगे।
नोट बंदी को तो छोडे़। गंगाधर का अधजले नोटों पर एक अलग ही विचार है। दोषी तो यहाँ जज साहब या कोई और नहीं है। नोट स्वयं ही हैं। नोटों का काम जलना कौन होता है? यह अपना मूल स्वभाव भूल गया। नोटों का भी चारीत्रिक पतन पतनशील लोगों के हाथों अकूत काला धन आने से हुआ है। सीने में बापू की फोटो के बावजूद इतनी जल्दी समझौता कर डाला। नोट तो दूसरों के दिलो-दिमाग़ में आग लगाते हैं। ये स्वयं होम हो गए। फ़ायर ब्रिगेड कम से कम मध्यांतर में आ तो जाता है, नहीं तो पुलिस होती तो आख़िरी में आती। अरे राख ही बन जाने देते तो आरोपों की इतनी राख तो नहीं उड़ती।
नोट तरह-तरह से लोगों को जलाता है। आप कुछ लोग दो कमरे के छोटे से मकानों में गुज़र बसर करते हैं। लेकिन कोई एक धन्ना सेठ यानी कि नोटों से भरापूरा आदमी कहीं से आया। पास की ज़मीन ख़रीद अपनी कोठी तनवा डाली। आसपास के सबको जला डाला। ये नोटों की ही तो माया थी। कुछ लोग तो दूसरों की प्रगति पर इतना जलते हैं कि उस पर तो रोटी सेकी जा सकती है।
प्रेमिका पर यदि प्रेमी अच्छी ख़ासी रक़म ख़र्च करता रहे तो वो मुहब्बत की आग में जलने लगती हैं। ये मुहब्बत की आग आख़िर लगाई किसने अरे वही खरे-खरे नोटों ने। विश्वास नहीं है तो मुझे एक उदाहरण दे दो कि साइकिल पर चलने वाले किसी प्रेमी ने कभी प्रेमिका के दिल पर आग लगाने में कामयाबी पाई हो। ऐसा प्रेमी ब्रेकअप में कामयाबी पाता हैं। कभी नहीं केवल हिन्दी सिनेमा को छोड़कर। असल में तो वो ऐसे बालमा पर आग बबूला होती है।
नोटों का डीएनए जलाने का होता है। अरे सुकून से आप आलीशान कोठी, लग्ज़री कार व महँगे आभूषणों के रूप में दूसरों को जलाते। लेकिन आपको तो इतनी जल्दी कि स्वयं ही जल उठे। पतंगे का तो सुना था कि दीपक की ओर भागता है। इतनी जल्दी तो नितीश कुमार जी भी पाला नहीं बदलते।
अरे नोट महाराज आप तो इतनी तरह से लोगों को जलाते रहते हो कि उसका वर्णन करने निकले तो जगह कम पड़ जाएगी। अभी ईशा अंबानी ने कोई एक ड्रैस पहनी दस लाख की आपके ही दम पर। तो न जाने कितनी सुंदरियाँ भीतर ही भीतर ऐसी क़िस्मत देख जल उठी होंगी।
आपकी महिमा अपरंपार। मुकेश अम्बानी ने अपने सुपुत्र की शादी में दिल खोल के नोट ख़र्च किये कि चार माह तक कार्यक्रम का कवरेज मीडिया में आता रहा। न जाने कितने-कितने लोगों को यहाँ के ठाठ-बाट से जलन हो उठी होगी। बताइये आप जले कि आपने जलाया। फिर उन्होंने जियो की दर बढ़ाने का ’मेरा सपना सबका अपना’ को ’मेरा सपना मेरा अपना’ में बदल रातों-रात दर बढ़ा विवाह का पूरा पैसा वसूल लिया। सही है न जिसके पास आपका समृद्ध सानिध्य हो उसका दिमाग़ भी ख़ूब चलता है।
चलते-चलते एक ही सवाल आपके डीएनए में ये अनपेक्षित उत्परिवर्तन हुआ आख़िर कैसे? क्या ज़रूरत थी जलने की वो भी आधे अधूरे मन से?
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
-
- एनजीओ का शौक़
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद प्रशिक्षण व शोध केन्द्र
- अगले जनम हमें मिडिल क्लास न कीजो
- अन्य क्षेत्रों के खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल
- असहिष्णु कुत्ता
- आप और मैं एक ही नाव पर सवार हैं क्या!
- आम आदमी सेलेब्रिटी से क्यों नहीं सीखता!
- आर्दश आचार संहिता
- उदारीकरण के दौर का कुत्ता
- एक अदद नाले के अधिकार क्षेत्र का विमर्श’
- एक रेल की दशा ही सारे मानव विकास सूचकांको को दिशा देती है
- कअमेरिका से भारत को दीवाली गिफ़्ट
- कुत्ता ध्यानासन
- कुत्ता साहब
- कोरोना मीटर व अमीरी मीटर
- कोरोना से ज़्यादा घातक– घर-घर छाप डॉक्टर
- चाबी वाले खिलौने
- जनता कर्फ़्यू व श्वान समुदाय
- जियो व जीने दो व कुत्ता
- जीवी और जीवी
- जेनरेशन गैप इन कुत्तापालन
- टिंडा की मक्खी
- दुख में सुखी रहने वाले!
- धैर्य की पाठशाला
- नख शिख वर्णन भ्रष्टाचार का
- नयी ’कोरोनाखड़ी’
- नये अस्पताल का नामकरण
- नोटों का कार्य जलना नहीं जलाना है!
- परोपकार में सेंध
- बेचारे ये कुत्ते घुमाने वाले
- भगवान इंसान के क्लासिक फर्मे को हाईटेक कब बनायेंगे?
- भोपाल का क्या है!
- भ्रष्टाचार व गज की तुलना
- मल्टीप्लेक्स और लुप्तप्रायः होता राष्ट्रीय चरित्र
- मार के आगे पति भी भागते हैं!
- मुर्गा रिटर्न्स
- युद्ध तुरंत बंद कीजो: श्वान समुदाय की पुतिन से अपील
- ये नौकरी देने वाला एटीएम कब आएगा!
- ये भी अंततः गौरवान्वित हुए!
- विज्ञापनर
- विदेश जाने पर कोहराम
- विवाद की जड़ दूसरी शादी है
- विश्व बैंक की रिपोर्ट व एक भिखारी से संवाद
- शर्म का शर्मसार होना!
- श्वान इंसान की पहचान
- श्वान कुनबे का लॉक-डाउन को कोटिशः धन्यवाद
- संपन्नता की असमानता
- साम्प्रदायिक सद्भाव इनसे सीखें!
- सारे पते अस्पताल होकर जाते हैं!
- साहब के कुत्ते का तनाव
- सूअर दिल इंसान से गंगाधर की एक अर्ज
- सेवानिवृत्ति व रिटायरमेंट
- हाथियों का विरोध ज्ञापन
- हैरत इंडियन
- क़िला फ़तह आज भी करते हैं लोग!
- आत्मकथा
-
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 1 : जन्म
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 2 : बचपन
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 3 : पतित्व
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 4 : हाईस्कूल में
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 5 : दुखद प्रसंग
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 6 : चोरी और प्रायश्चित
- लघुकथा
- विडियो
-
- ऑडियो
-