बेचारे ये कुत्ते घुमाने वाले
सुदर्शन कुमार सोनी("अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो" व्यंग्य संग्रह से)
आजकल मुझे कुत्ते घुमाने वालों पर काफ़ी दया आ रही है। ऐसा नहीं है कि पहले लोग कुत्ते नहीं घुमाते थे या कुत्ता घुमाने वाले को नहीं घुमाता था। लेकिन शायद हमारी पारखी नज़रें ऐसे लोगों पर नहीं पड़ी थीं! ठीक है ’देर आयद दुरस्त आयद’। वैसे तो इस देश में न जाने कब से राजनैतिक दल मतदाताओं को घुमा रहे हैं लेकिन वे हैं कि समझते ही नहीं। कुत्ते से ही सीख लेते हर बार आप उसे नहीं घुमा सकते कई बार उसे घुमाने वाले को वह घुमाने लगता है! एक सीख मिलती है कि ’कुत्तों को लतियाने में नहीं उनसे सीखने में समझदारी है।’
कुत्ते घुमाने वालों को ठीक से समझने के लिए थोड़ा इसके विस्तार में जाना चाहिये। कुत्ता, मालिक स्वयं या नौकर घुमाता है। आपने कुत्ता तो पाल लिया लेकिन अब उसकी तीमारदारी नहीं होती तो आप इसके लिये एक तरह से मिस्टर या मिस्ट्रेस रख लेते हैं। जो उसके पॉटी कराने, खाना देने, दुलारने, नहलाने, ब्रश करवाने जैसे सारे महान कार्य को अंजाम देते हैं!
कुत्ता भी कम कुत्ता नहीं होता है! यदि उसको मालिक घुमा रहा हो तो वह बहुत इतराता है, नौकर घुमा रहा हो तो कम इतराता है। और यदि मालकिन घुमा रही हो ख़ास करके यदि वह युवा व ख़ूबसूरत हो तो पता नहीं कुत्ते को कहाँ से अक्ल आ जाती है। वह ज़रूरत से ज़्यादा उछल-कूद करता हुआ ही घूमता है! कुत्ते को भगवान ने नथुने बहुत तेज़ दिये है! नथुने से वह कमसिन व जवान, अधेड़ खूसट व बूढ़े आदि की गंध शायद पा लेता है!
कई सयाने नौकर पगार के दम पर यह काम करते तो हैं लेकिन उन्हें यह काम बड़ा नागवार गुज़रता है। जितना कुत्ता किसी अजनबी को देखकर नहीं गुर्राता होगा, उतना ये अपने मालिक के बारे में सोच-सोच कर अंदर ही अंदर गुर्राते रहते हैं। ख़ासकर अधिकारी का अर्दली ज़्यादा गुर्राता है कि कर्म फूटे थे कि इस थैंकलैस ड्यूटी में उसके थैंकलैस साहब ने फँसा दिया है। ऐसे लोग कुत्ते को बँगले से दूर ले जाकर कहीं छोड़ देंगे या किसी खूँटे से बाँधकर मोबाईल पर बात करते रहेंगे या व्हाटस् ऐप को बार-बार देखने के अपने ऐब को पूरा करते रहेंगे और उधर कुत्ता साहब नित्य धर्म-कर्म से जैसे ही निवृत हुये कि वे उसे लेकर वापिसी डाल देते हैं। कई साईकल में पैडल मारते हुये एक हाथ से साईकल व दूसरे में कुत्ते जी की लीश पकडे़ हुये घुमाने के काम को अंजाम देते हैं।
कई नौकर वैसे इस छोटे से काम में अपने को बड़ा गौरवान्वित महसूस करते हैं। यह इस पर निर्भर करता है कि कुत्ता कितना महँगा व दुर्लभ प्रजाति का है! मालिक से ज़्यादा गुरूर इनको हो जाता है। यदि उसके मालिक किसी ऐसी दुर्लभ प्रजाति का कुत्ता ले आये हों कि लोग उसे रुक-रुक कर देखते हों! लेकिन इस समय कुत्ता सरपट भागता है, ऐरे-ग़ैरे लोगों को वह देखना नहीं चाहता न उनके मुँह ही लगना चाहता है! जैसे कि बड़ा आदमी छोटे को मुँह नहीं लगाना चाहता! उसे भी भान हो जाता है कि वह काफ़ी महँगी व मस्त-मस्त चीज़ है।
कई बार घुमाने वालों को बड़ी मुश्किल हो जाती है। कुत्ता साहब अपने नित्यकर्म को अंजाम देने में काफ़ी विलंब करते हैं। कुत्ते को साहब ही तो बोलोगे; साहब के पास अर्दली रहता है, गाड़ी रहती है और कुत्ते के पास भी यह सब रहता है! उनका ध्यान विपथित हो जाता है! और आपको पता ही है कि उसका विपथन या ध्यान भंग ज़्यादातर किस कारण से होता है! विश्वामित्र जैसे ऋषि भी अपने को नहीं रोक पाये थे तो यह तो पाठक मित्र कुत्ता साहब हैं! घुमाने वाले को पता चला कि वह स्वयं द्रुत गति से भारी हो रहा है और यहाँ कुत्ता साहब हल्के होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। वे बिना हाथ मुँह धोये चले आये हैं परंतु कुत्ता साहब इस बात को ज़रा सी भी तव्वजो देने तैयार नहीं हैं!
घुमाने वाले के साथ एक और जोखिम रहती है। कुत्ते का सामना यदि किसी अन्य मुसटण्डे कुत्ते से हो जाये तो भारी मुश्किल हो जाती है। बड़ी मुश्किल से ऐसी स्थिति से निपटना सम्भव होता है। ऐसा इंसानों के बीच भी होता है इसे आप चैनलों की बहस में चाहे जब देख सकते हैं! साहब होते तो वे ज़िम्मेदारियों से मुँह मोड़ने की नैसर्गिक आदतवश दौड़ लगा सकते थे! लेकिन यदि घुमाने की कमान नौकर के हाथ में है तो उसकी जान साँसत में होती है। अब आपने देख ही लिया कि कुत्ते घुमाने वालों से मुझे क्यों सहानुभूति है, क्योंकि एक समय की बात हो तो चल जाये, ये कुत्ता कम से कम दिन में चार बार चक्कर लगवाता है! आदमी अपनी पॉटी में दिन में एक बार परेशान होता है और कुत्ता साहब की में चार-पाँच बार तक होता है!
आज़ादी का सबसे ज़्यादा लुत्फ़ शायद ऐसे ही ’कुत्ता साहब’ उठा रहे हैं और घुमाने वाले को लगता है कि वह कुत्ते की ज़ंजीर पकड़ते ही गुलामी की ज़ंजीर में बँध गया है! ऐसा आदमी तो यह भी सोचता ही होगा कि हे भगवन ’अगले जन्म मोहे कुत्ता ही कीजो!
लेकिन वफ़ादार जानवर के लिये यदि आप वफ़ादार नौकर का रोल अदा कर रहे हैं तो इसमें कोई बुरा मानने की बात नहीं है! आप इंसान का यह कुत्ता कमीनापन नहीं इंसानपन ही है कि आप कुत्ते के काम आये! नहीं तो हम सब में सिवाय कुत्तापन के और है क्या? और यदि कुत्तेपन से इंसानपन की तुलना करो तो आपको कुत्तापन ज़्यादा सही लगेगा। गंभीरता से विचार करो गंगू के विचारों से आप सहमत हो जायेंगे!
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