अन्य क्षेत्रों के खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल
सुदर्शन कुमार सोनीकामताप्रसाद जी आज ज़बरदस्त ख़ुश दिखायी दे रहे थे, जैसे वे देश के महान खिलाड़ी हों तथा देश के लिये एक-दो स्वर्ण पदक कामॅनवेल्थ खेलों में जीत कर अपने गृह नगर पहली बार आ रहे हों। वैसे इसमें कोई शक़ नहीं कि वो खिलाड़ी तो हैं और स्तर भी राष्ट्रीय से कम तो है नहीं। कॉफ़ी हाउस में मिल गये थे, "मैंने कहा क्या बात है इतने ख़ुश तो हमारे पहलवान भी गोल्ड मेडल जीतने के बाद भी नहीं दिख रहे थे!"
वे बोले, "उस गोल्ड मेडल की चमक कुछ ही दिन रहती है फिर इस देश के लोग सब भूल जायेंगे! और अपने अपने काम में लग जायेंगे। अब जब कोई बड़ी रेल या बस दुर्घटना होगी तो सरकार को कोसने में लग जायेंगे या बढ़ती महँगाई पर सरकार को कोसेंगे या किसी बडे़ सामने आए घोटाले की चर्चा में व्यस्त हो जायेंगे। हमारे परिपक्व लोकतंत्र ने यही तो अधिकार इन्हें दिया है! कॉमनवेल्थ का गोल्ड मेडल इतिहास की बात हो जायेगी इसमें न कोई बात है और न ही कोई करामात। लेकिन हम जो मेडल अभी-अभी जीत कर आये हैं वह हमारा अतीत, वर्तमान व भविष्य तीनों को बदल देगा। हम एक कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष बन गये हैं। यह अध्यक्ष पद रूपी मेडल खेलों के गोल्ड मेडल से बहुत ज़्यादा करामाती है। अब इस कुर्सी रूपी खेल से अपना खेल कई वर्षों तक खेलते रहेंगे। और तुम्हारे कॉमनवेल्थ के गोल्डमेडलिस्ट रोज़ी-रोटी के चक्कर में अपना गोल्ड मेडल भूलने को विवश कर दिये जायेंगे और शीघ्र ही खेलों से सन्यास लेने के बारे में सोचने लगेंगे। लेकिन हम सात पुश्तों का इंतज़ाम करने के बाद ही संन्यास अपने खेल से लेंगे; जबकि आपका गोल्ड मेडल सात माह भी खिलाड़ी को रोज़ी-रोटी नहीं दे पायेगा। अब आप ही बताओ कि हमारा मेडल करामाती है कि आपका मेडल।"
मैं यह ज्ञानवाणी चुपचाप सुनकर घर के लिये लिये निकल आया क्योंकि मेरे पास कामताप्रसाद जी की बातों की कोई काट नहीं थी। रास्ते में मुझे ज्वालाप्रसाद जी मिल गये जो कई वर्षों से खेल राजनीति में अपने खेल के जौहर दिखा रहे थे बग़ैर कोई खिलाड़ी हुये ही। उनका प्रसन्न व प्रफुल्लित मुखड़ा देखकर मैंने प्रश्न दागा, "क्या बात है आपके किसी खिलाड़ी को गोल्ड मेडल मिल गया है क्या?"
वे बोले, "इस गोल्ड को छोड़ो इसकी चर्चा एकाध महीने होती है फिर इस देश के लोग अन्य बातों में बहलना शुरू हो जाते हैं मीडिया जहाँ इनको बहला ले जाये। जैसे धार्मिक मेले में भगदड़ मचने से मौत, या कौन बनेगा करोड़पति या बालिका वधु थीम के सीरियलों की खलनायिकाओं की खलनायकी करतूतों पर।"
मुझे ज्वालाप्रसाद जी का भी, कामताप्रसाद जी की तरह लोगों की मानसिकता व मनोविज्ञान के बारे में ज्ञान देखकर हीनता का अनुभव अपने ज्ञान के स्तर पर हुआ। वे आगे बोले, "मैंने तो वो मुक़ाम हासिल कर लिया है कि इस गोल्ड मेडल में तो कोई बात ही नहीं है! फ़ेडरेशन की अध्यक्षी पाँच साल के लिये मिल गयी है, इसका बजट ही पच्चीस करोड़ सालाना है। हमारे जैसे बहुमुखी प्रतिभा के आदमी के यहाँ बैठने से इसका बजट भी बढ़कर कई गुना हो जायेगा। और अभी हमारा इन्कम बजट चार अंकों में है, जो कि हमारी करामातों से शीघ्र बढ़कर छः अंकों में पहुँच जायेगा। अब आप ही बतायें मेरा यह गोल्ड बड़ा और करामाती है कि यह कॉमनवेल्थ का कुछ समय के लिये टिमटिमाने वाला गोल्ड?"
मैंने कहा, "वाह उस्ताद मान गये। अब चला जाये।"
और हम अपनी मारूती 800 को पार्किंग से निकालने की कवायद कर रहे थे कि मुझे अपनी स्कोडा पार्किंग में लगाते बरबक्श सिंह मिल गये। वो भी इतने प्रसन्न दिख रहे थे जितनी कि साइना नेहवाल भी गोल्ड जीतने के बाद नहीं दिख रही थी। मैं अपने को रोक नहीं पाया, मैंने कहा, "क्या आपके यहाँ भी कोई रिश्तेदार या आपका परिचित पदक जीत कर आ रहा है?"
वे बोले, "अरे यार अपने यहाँ तो कई पीढ़ियों से किसी ने खेलकूद में हिस्सा ही नहीं लिया है; जबसे हम राजनीति के खेल में आये हैं, हमें किसी भी खेल में रुचि नहीं बची है और पूरा कुनबा भी इसी खेल को खेलने में रुचि ले रहा है। जैसे कॉमनवेल्थ में वो पाँच बहनें हैं न गीता, मीता वगैरह एक हर खेल कुश्ती में रुचि रखती है; उसी तरह हम लोग भी एक ही खेल में रुचि दिखा रहे हैं। मेरी प्रसन्नता का राज़ गोल्ड मेडल नहीं है। मुझे तो उससे भी बड़ा मेडल मिल गया है। यार तीन प्रांतों में जहाँ अपनी सरकार थी, वहाँ दलिया सप्लाई का ठेका मिल गया है। कई वर्षों की सार्वजनिक जीवन की तपस्या का यह पुण्य है; लम्बी अमावस्या के बाद पूर्णिमा आई है। कॉमनवेल्थ के गोल्डमेडल का क्या; शीघ्र ही लोग सब भूल जायेंगे और फिर इन समाचारों पर बहस चलेगी कि कैटरीना व सलमान में वास्तव में दूरी बढ़ी है कि नहीं? बाबरी मस्जिद व रामजन्म भूमि के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील का निणर्य शीघ्र आने वाला है, सुरक्षा बल सतर्क हैं। आज नहीं तो कल आयेगा कल नहीं आया तो परसों आयेगा। और लोग राशन की सामग्री व जानमाल के बारे में सोचने के लिये व्यस्त हो जायेंगे। लेकिन अपना यह नया काम किसी भी गोल्ड मेडल वाले को काम पर रखने का दम रखता है। यदि आपको ही समाचार मिले कि कॉमनवेल्थ खेलों का गोल्ड मेडलिस्ट एक साल बाद भी बेरोज़गारी से त्रस्त होकर अपना मेडल वापिस करने की सोच रहा है, तो तुम मुझे याद कर लेना। मैं गोल्डमेडलिस्ट को नौकरी दे दूँगा, बस उसे इतना बता देना कि जहाँ कहा जाये वहाँ हस्ताक्षर अपनी आँखें बंद कर, करवाकर आयेगा। भले ही वहाँ एक किलोग्राम भी दलिया सप्लाई न हुआ हो। वैसे भी हमारे बहुत से खिलाड़ी जैसे तीरंदाज़ आदि अपनी एक आँख तो बंद रखते ही हैं खेलते समय, यहाँ मैं एक और बंद करने कह रहा हूँ।"
यहाँ से मैं थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि ट्रैफिक जाम में गाड़ी फँसने से मैं भी फँस गया। आगे पीछे की गाड़ी वाले आदत के वशीभूत होकर लगातार हार्न दे देकर वार्न कर रहे थे, लेकिन इससे कोई क्या ट्रैफिक क्लीयर होने वाला था? मैंने भी इस हार्न के कोरस में कुछ समय अपनी एनर्जी ख़राब की। बाद में कुछ ही देर में सभी दो, तीन, चौपहिया वाहन वाले पस्त पड़ गये; उसी तरह जैसे भ्रष्टाचार की शिकायत करते-करते शिकायतकर्ता महीनों कोई कार्यवाही न होते देख पस्त पड़ जाते हैं। एक-दो गाड़ी वाले नीचे उतर कर ज्ञानअर्जन कर वापिस आकर अन्य लोगों को अपना ज्ञान बाँट रहे थे कि किन्हीं पिंकी भैया का जुलूस है। वे किसी पार्टी के युवा मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये हैं। जगह-जगह उनके पोस्टर अटे पडे़ थे उनमें उनका ग़ज़ब का मुस्कराता करामाती चेहरा दैदीयप्यमान था। मुझे लगा कि इतना ख़ुश तो कॉमनवेल्थ का कोई गोल्डमेडलिस्ट भी नहीं था और इतनी भीड़ युवाओं की! ये सभी पिंकी भैया का यह अध्यक्ष पद रूपी गोल्डमेडल कॉमनवेल्थ के गोल्ड से बेहतर मानते हैं, तभी तो इतनी संख्या में आये हैं। खिलाड़ी के जीत कर आने पर रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट पर दस-पचीस लोग आ जायें बहुत बड़ी बात है। तभी तो भारत को दूसरा स्थान पदक तालिका में दिलाने वाली साइना को रिसीव करने एयरपोर्ट कोई भी ख़ास व्यक्ति नहीं पहुँचा। भाई साहब मुझे भी यह बात सही लग रही है कि इस देश में खेलों के गोल्डमेडल से अन्य खेलों, जिनका हम ज़िक्र ऊपर कर चुके, की दुधारू गाय की तरह लाभ देने वाले पद या कुर्सीरूपी मेडल ज़्यादा करामाती व बडे़ हैं।
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