सफ़र

रेखा भाटिया (अंक: 219, दिसंबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

यहाँ क्या जुड़ता है
यहाँ क्या टूटता है
कौन से बन्धन हम जोड़ जाते हैं
कौन से बंधन हम तोड़ जाते हैं
कौन से निशान पीछे छोड़ जाते हैं
किनसे नाता हम तोड़ जाते हैं
धरा रह जाता है सभी यहाँ का यहाँ
वही धरती, वही आसमान
वही दो गज़ ज़मीन
जो बन जाएगा हमारा आशियाँ
देह छूट जायेगी
रूह साथ जायेगी
साथ ले जाएगी कर्मों का हिसाब
उसी अनंत में विलीन हो जाएगी
जहाँ से कभी सफ़र शुरू किया था। 

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