किसी दिन

01-12-2022

किसी दिन

रेखा भाटिया (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

किसी दिन
मेरे जाने के बाद
हाथ में ले तस्वीर मेरी
बैठाना यादों को पास। 
 
याद करना उन लम्हों को
ढलती श्याम और रात के बीच
आँखों से आँखों के इशारे
लबों ने कर ली थी दोस्ती। 
 
उस सुबह तुम थीं आग़ोश में
आसमान में सूरज चाँद बग़ल में
तारों भरी मुस्कराहट झुके नयन
उस सुबह में ख़ुद को भूला था। 
 
खोये रहते प्रेम में एकदूजे के
गर्दिश-ए-दुनियादारी निभाते
रंज का तीर तुम दिल लगा
बैठे रहे रूठे ताउम्र गुज़री। 
 
काँच के उस रिश्ते में प्रेम था
जैसे साथ गुलाब का, काँटे शक के
ज़ख़्मी होता था दिल मेरा बहुत
रूह से करता शिकवे-शिकायत। 
 
प्यार मनुहार से साझा किया दर्द
तुम्हें लगता रहा प्यार प्यार नहीं
दो किनारे हैं हमतुम जुदा-जुदा
बीच ख़ामोशी की नदी उफान पर। 
 
सुना था शक की चिड़िया
दाना चुगे विश्वास का
गीत गाए नाराज़गी के
प्रेम में एहसास बिछोह का। 
 
तुम्हें पाकर भी खो दिया
तुम मुझे पाती भी तो ऐसे
जैसे बादल बिन पानी, उड़ता
सोचता आसमान की हद। 
 
किसी दिन
मेरे जाने के बाद
हाथ में ले तस्वीर मेरी
यादों को भुलाने की कोशिश करना . . .

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