इतनी-सी बात है
रेखा भाटियामैं निर्दोष हूँ आज भी उतनी
जितनी कल थी
फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है
आज मेरे लबों पर आग है
कल मेरे चूल्हे में आग थी
कल यह आग चूल्हे से मेरे दिल में लगती
आज लबों से ज़माने के दिल में लगी है
कल इसी आग से पेट भरता था ज़माने का
आज इसी आग से ज़माना रह जाता भूखा
कल भी मैं गुज़री थी अग्निपरीक्षा से
आज भी गुज़र रही हूँ
फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है ज़माने को जलता देख
मैं भी जल रही हूँ
निर्दोष मैं आज भी
वह शब्द ढूँढ़ रही हूँ अब तक जिनमें
कर सकूँ प्रतिपादन और बुझा सकूँ
इस आग को जो जला रही है मुझे भी, तुम्हें भी
मैं निर्दोष हूँ उस हवा-सी जो बह रही
दबी चिंगारी ने आग पकड़ी
दोष दिया जाता हवा को वह बह रही थी!
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