अनुभव

रेखा भाटिया (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

अनुभव क्या मेरा अपना है
अनुभव कुछ पिता का, दादा का
दुनिया ने कुछ सौग़ात में दिया
कुछ माँ भी समेट लाई थी मायके से
 
बचपन का अनुभव मीठा-मीठा
रसगुल्ले-सा मुँह में जाते घुल गया
युवावस्था में प्रेमरोग लगा
गृहस्थी की सिगड़ी में झोंक गया
आटे-दाल के भाव रटा गया
सपनों के तानों-बानो में उलझा गया
कुछ अपना, कुछ पराया अनुभव ऐसा
दो पाटों में आटा-घुन पिसते वैसा
 
अनुभवों की दुनिया में फूल खिले
सोचा लौट आया मीठा बचपन
भूल कर बैठे बिना धूप सफ़ेदी छाई
रसगुल्ला नहीं निमोड़ी के फूल थे
उम्र बीत रही, झुर्रियाँ चढ़ आई
अनुभवों की क़िताब अब भी खुली है
राम-राम करते हर अध्याय पढ़ते
परीक्षा कठिन किताब मोटी है . . .

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