मेहँदी

रेखा भाटिया (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

अभी-अभी गीली है मेहँदी
खिलना बाक़ी है कच्ची कली-सी
कच्चे मन के अरमानों-सी सजी
सपने देखती हथेलियों पर मेहँदी
 
उम्मीदों संग प्यार से घोटी गई
सपनों की छवियाँ उकेरीं गईं
पिया का अक्षर छिपा छवियों में
मन बावरा ढूँढ़ता पिया अक्षर
 
रच बस हथेलियों पर पलने लगी
नींबू शरबत का रसपान करती
प्रतीक्षा गहरी, कब गहरी होगी मेहँदी
तपस्वी बन दुलहन तपस्या में लगी
 
ब्याह का सूरज प्रातः उदित हुआ
झरती मेहँदी रची थी फीकी
पिया अक्षर कमज़ोर रचा था
सपनों की छवियाँ धुँधला-सी गईं 
 
कोयला-मिर्ची धुँए के ताने मारे गए
हृदय का स्वाभिमान जतन कर टूटा
बेरंगी मेहँदी झर गयी आँसुओं संग
रच न सकी दहेज़ के मौसम में

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