औरत देवी स्वरूप
रेखा भाटिया
नौ रसों से सजा है जीवन, नौ रूप माँ दुर्गा के
नौ गुणों से सजी है धरती, नौ गुणों से औरत
गुण उसका सँवारे जीवन, रूप करे धन्य जीवन
आत्ममंथन, आत्मचिंतन और करें विश्लेषण
प्रथम गुण अडिगता, लाए ठहराव और उत्साह
द्वितीय गुण संयम, अनुशासन से पाए सफलता
तृतीय गुण संतुष्टि, शान्ति का भाव भरे मन में
चतुर्थ गुण निर्भय, भयमुक्त करे प्रेम से पोषण
पंचम गुण सृजन, ममता से परिपूर्ण पवित्र
छटा गुण शक्ति, देती चुनौती हर विषम को
सातवाँ गुण प्रचंड, दिन-रात के भेद से परे
आठवाँ गुण सौहार्द, आडंबरहीन सहज सुचारु
नौवां गुण कुशलता, जीवन करे पूर्ण सम्पूर्ण
नौ दिन की आराधना कर पूजा जाता देवी को
औरत स्वरूप देवी का, है कथनी इस समाज में
करनी में अंतर बहुत है, विवाद का यह विषय है
समय बदला, सोच बदली, नई धार में बह निकली
बदल रही है औरत सशक्त हुई गुणों की धनी
कल्पना से ऊँचा उम्मीदों का पहाड़ कन्धों पर
भक्ति से देवी को प्रसन्न करने के मार्ग कई
औरत की अवहेलना पग-पग पर आज तक
क्या लिखी है कहीं व्याख्या उस मार्ग की
जिससे बनी रहे अस्मिता, स्थापित हो मर्यादा
औरत की, दसवाँ गुण अपनाए पुरुष राम-सा
नौ गुणों से परिपूर्ण औरत के जीवन में तब
मने विजयादशमी आने वाले युगों-युगों तक
आक्रोश, प्रतिशोध उसके नैसर्गिक गुण नहीं
यह भ्रम मात्र फैला है अवहेलना से उसकी!
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