सभी चाहते पड़े फ़ुहार
जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’जयकरी छंद पर आधारित कविता
गरमी पड़ती अपरंपार।
मौसम की पड़ती है मार।
धरती जलती जैसे आग।
सबको पानी की दरकार।
सभी चाहते पड़े फ़ुहार . . .॥
कौन है इसका ज़िम्मेदार।
कैसे होगी पैदावार।
नीर बचाओ कहते लोग।
नहीं करें कोई उपचार।
सभी चाहते पड़े फ़ुहार . . .॥
चाह रही धरती जलधार।
श्यामल हो जाए घर द्वार।
पेड़ काटते जाते लोग।
करते धरती का संहार।
सभी चाहते पड़े फ़ुहार . . .॥
जल बिन होता हाहाकार।
प्रकृति करे कैसे शृंगार।
बूँद बूँद को तरसे लोग।
सच्चाई कर लें स्वीकार।
सभी चाहते पड़े फ़ुहार . . .॥
चलती है अब नहीं बयार।
जल के सब ख़ाली भंडार।
जल के स्रोत बढ़ाए कौन।
होता बातों का व्यापार।
सभी चाहते पड़े फ़ुहार . . .॥
जल के प्यासे करें पुकार।
इक अनार है सौ बीमार।
भंडारे करते कुछ लोग।
निभा रहे हैं लोकाचार।
सभी चाहते पड़े फ़ुहार . . .॥
मिलकर हम सब करें विचार।
करें नहीं जल को बेकार।
पेड़ लगाएँ हम सब ख़ूब।
तब हो ख़ुशियों की बौछार।
जीवन में तब पड़े फ़ुहार . . .॥