प्रभु कृपा की यह निशानी है
जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’प्रभु कृपा की यह निशानी है।
चल रही जो ज़िंदगानी है।
साथ में कुछ भी न जाएगा।
सारी दौलत छोड़ जानी है।
सुख दुखों की बह रही नदियाँ।
नाव ख़ुद अपनी चलानी है।
कर्म करते हम रहें अपने।
तब सफलता पास आनी है।
प्रेम का यदि भाव हो मन में।
ज़िंदगानी तब सुहानी है।
मत करो झूठा दिखावा तुम।
सब यहीं क़ीमत चुकानी है।
ज़िंदगी है चार दिन की यह।
सब यहीं पर बीत जानी है।