जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’ - 005 दोहे
जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’
1.
है अनंत शुभकामना, सदा रहें ख़ुश आप।
मंगलमय जीवन रहे, कभी न हो संताप॥
2.
लोग नहीं अब बैठते, मातु-पिता के संग।
मिलते नहीं विचार अब, चढ़ा पश्चिमी रंग॥
3.
योग करें पर भोग से, रहिए थोड़ा दूर।
तन-मन दोनों स्वस्थ हों, ख़ुशियाॅं हों भरपूर॥
4.
जहाँ देखिए है वहाॅं, होती ठेलमठेल।
जनसंख्या के दंश को, देश रहा है झेल॥
5.
जीवन की नदिया बहे, आता उसमें ज्वार।
कर्मशील ही तैर कर, जाता है उस पार॥