जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’ – 003 दोहे
जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’1.
खेल खेल में दीजिए, बच्चों को कुछ ज्ञान।
रोचकता से सीख लें, हो असली पहचान॥
2.
भीड़भाड़ चहुँ ओर है, जिधर देखिए आप।
भाग रहा है आदमी, सरदी हो या ताप॥
3.
बेर खा रहे राम जी, कृष्ण खा रहे साग।
प्रभु जी जाते हैं वहाॅं, जिनके उर अनुराग॥
4.
साँसों में घुलता ज़हर, होते सब बीमार।
इसका दोषी कौन है, इस पर करें विचार॥
5.
बरगद पीपल आम की, याद आ रही छाँव।
अपनेपन के भाव से, बुला रहा है गाँव॥
6.
आँखों में आँसू छिपे, दिल में गहरे राज़।
होंठों पर मुस्कान ले, करते सारे काज॥
7.
भोर हुआ सूरज उगा, खग गाते हैं गान।
आप सभी को भाव से, सादर करूँ प्रणाम॥