महापुरुष
जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’सत की नाव चलाने वाले, कभी नहीं हैं घबराते।
निज कर्मों के द्वारा प्रतिपल, उन्नति जीवन में पाते॥
बाधाओं के आने पर जो, दुखी नहीं जो होते हैं।
आशातीत सदा होकर ही, गीत ख़ुशी के हैं गाते॥
जब आते हैं पेड़ों पर फल, पेड़ स्वयं झुक जाते हैं।
वैसे ही गुणगान पुरुष भी, सहज भाव को दिखलाते॥
मातृ पितृ आचार्य धर्म का, जो नित पालन करते हैं।
ईश कृपा से वो जीवन भर, हैं सुख से समय बिताते॥
झूठी शान दिखावे से वो, दूर सदा ही रहते हैं।
सरल सरस बनकर जीवन में, सबके मन को नित भाते॥
दंभ द्वेष को मन में अपने, पाला करते कभी नहीं।
स्वयं सुमन बनकर ही प्रतिपल, वे जग को हैं महकाते॥
परहित सरिस धर्म नहिं भाई, ग्रंथों ने है बतलाया।
ऐसे ही उपकारी सज्जन, महापुरुष हैं कहलाते॥