जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’ – 002 मुक्तक

01-12-2022

जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’ – 002 मुक्तक

जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’  (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

1.
हो अगर तकरार उसमें प्यार हो। 
मतलबी कोई नहीं व्यवहार हो। 
है ठिठोली भी बहुत अच्छी नहीं। 
चुप रहो यदि वार का आसार हो। 
 
2. 
हो गयी है भोर अब उठ जाओ भी
सूर्य किरणों का दर्शन पाओ भी
त्याग कर आलस्य कुछ कर पाओगे
देह की करके सफ़ाई खाओ भी। 
 
3. 
पिता गंभीर होकर बोलता है। 
हृदय का दर्द कब वह खोलता है। 
पाँव चलते घर चलाने के लिए। 
दुख पीकर भी ख़ुशियाँ घोलता है। 
 
4. 
ममता की मूरत है माता, 
अनुशासन की छड़ी पिता। 
घर का सारा भार उठाए, 
ख़ुशियों की फुलझड़ी पिता॥
 
5. 
मातु पिता को नहीं चाहिए, कोई भी उपहार। 
सदा चाहते मिलता जाए, संतानों का प्यार॥
पढ़ लिखकर संतानें उन्नति, करती जाएँ ख़ूब। 
दुख जीवन में कभी न झाँकें, सुख की बहे बयार॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

दोहे
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
कविता
गीतिका
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में