भारतीय किसान
जितेन्द्र मिश्र ‘भास्वर’जयकरी छंद पर आधारित कविता
कृषक चलाता हल खेतों में।
पथरीली मिट्टी रेतों में॥
सुन्दर बना रहा है क्यारी।
फ़सल उगाने की तैयारी॥
हर मौसम में श्रम करते हैं।
दुख से कभी नहीं डरते हैं॥
फ़सल उगाते सब खाते हैं।
पर किसान कितना पाते हैं॥
कृषि प्रधान जो अपना भारत।
कृषकों से ही खड़ी इमारत॥
इनसे परचम लहराता है।
सच में यही अन्नदाता है॥
हसिया खुरपी व ट्रैक्टर से।
हल बैल व हार्वेस्टर से॥
अत्याधुनिक साधनों द्वारा।
कृषि कार्य करता है सारा॥
जीवन सरल और सादा है।
बोझ क़र्ज़ का भी ज़्यादा है॥
होंठों पर मुस्कान अनूठी।
आशा मन से कभी न छूटी॥
सुख सुविधा से वंचित रहता।
अपनी पीड़ा कभी न कहता॥
श्रम धारा में वह बहता है।
ख़ुशी ख़ुशी वह सब सहता है॥
कृषक हमारा स्वाभिमान है।
इनसे ही भारत महान है॥
इनको मिले सभी सुविधाएँ।
तब किसान उन्नत हो जाएँ॥
तब किसान उन्नत हो जाएँ . . .॥