मुकरियाँ - त्रिलोक सिंह ठकुरेला - 2
त्रिलोक सिंह ठकुरेला1.
जब देखूँ तब मन हरसाये।
मन को भावों से भर जाये।
चूमूँ, कभी लगाऊँ छाती।
क्या सखि साजन? ना सखि पाती॥
2.
रातों में सुख से भर देता।
दिन में नहीं कभी सुधि लेता।
फिर भी मुझे बहुत ही प्यारा।
क्या सखि साजन? ना सखि तारा॥
3.
मुझे देखकर लाड़ लड़ाये।
मेरी बातों को दोहराये।
मन में मीठे सपने बोता।
क्या सखि साजन? ना सखि तोता॥
4.
सबके सन्मुख मान बढ़ाये।
गले लिपटकर सुख पंहुचाये।
मुझ पर जैसे जादू डाला।
क्या सखि साजन? ना सखि माला।
5.
जब आये तब खुशियाँ लाता।
मुझको अपने पास बुलाता।
लगती मधुर मिलन की बेला।
क्या सखि साजन? ना सखि मेला।
6.
पाकर उसे फिरूँ इतराती।
जो मन चाहे सो मैं पाती।
सहज नशा होता अलबत्ता।
क्या सखि साजन? ना सखि सत्ता।
7.
मैं झूमूँ तो वह भी झूमे।
जब चाहे गालों को चूमे।
खुश होकर नाचूँ दे ठुमका।
क्या सखि साजन? ना सखि झुमका।
8.
वह सुख की डुगडुगी बजाये।
तरह तरह से मन बहलाये।
होती भीड़ इकट्ठी भारी।
क्या सखि साजन? नहीं, मदारी।
9.
जब आये,रस-रंग बरसाये।
बार बार मन को हरसाये।
चलती रहती हँसी - ठिठोली।
क्या सखि साजन? ना सखि, होली।
10.
मेरी गति पर खुश हो घूमे।
झूमे, जब जब लहँगा झूमे।
मन को भाये, हाय, अनाड़ी।
क्या सखि,साजन? ना सखि साड़ी।
11.
बिना बुलाये, घर आ जाता।
अपनी धुन में गीत सुनाता।
नहीं जानता ढाई अक्षर।
क्या सखि,साजन? ना सखि, मच्छर।