हम भी परहित करना सीखें
त्रिलोक सिंह ठकुरेलासूरज अपनी नव-किरणों से
बिखरा देता जग में लाली।
बूँदों के मोती बिखराकर
बादल फैलाता हरियाली॥
धरती के उपकार असीमित
सबको दाना पानी देती।
अपने आँचल के आश्रय में
सबके सारे दुःख हर लेती॥
उपवन सदा सुगंध लुटाकर
सबकी साँसें सुरभित करता।
खग-कुल मिलकर गीत सुनाता
सबके मन में ख़ुशियाँ भरता॥
हम भी परहित करना सीखें,
मिलकर सब पर नेह लुटायें।
औरों के दुःख दर्द मिटाकर
इस धरती को स्वर्ग बनायें॥