हाईकु गीत

30-09-2014

रक्त रंजित 
हो रहे फिर फिर 
हमारे गाँव। 

हर तरफ 
विद्वेष की लपटें 
हवा है गर्म,

चल रहा है 
हाथ में तलवार 
लेकर धर्म,

बढ़ रहें हैं 
अनवरत आगे 
घृणा के पाँव। 

भय जगाती 
अपरचित ध्वनि 
रोकती पथ,

डगमगाता 
सहज जीवन का 
सुखद रथ,

नहीं मिलती
दग्ध मन को कहीं 
शीतल छाँव।

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