हाईकु गीत
त्रिलोक सिंह ठकुरेलारक्त रंजित
हो रहे फिर फिर
हमारे गाँव।
हर तरफ
विद्वेष की लपटें
हवा है गर्म,
चल रहा है
हाथ में तलवार
लेकर धर्म,
बढ़ रहें हैं
अनवरत आगे
घृणा के पाँव।
भय जगाती
अपरचित ध्वनि
रोकती पथ,
डगमगाता
सहज जीवन का
सुखद रथ,
नहीं मिलती
दग्ध मन को कहीं
शीतल छाँव।