देवता की सीख
त्रिलोक सिंह ठकुरेलागाँव में एक मंदिर था। मंदिर के पास एक महात्मा जी रहते थे। वे मंदिर के देवता की पूजा और आरती करते थे।
माधव एक होनहार बच्चा था। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था। माधव कभी-कभी महात्मा जी के पास चला जाता था। महात्मा जी उसे बहुत प्यार करते थे।
एक दिन माधव ने महात्मा जी से पूछा - "बाबा , क्या देवता सचमुच होते हैं?"
"हाँ , बेटा," महात्मा जी ने कहा।
"देवता क्या करते हैं?" माधव ने पूछा।
"वह सब कुछ कर सकते हैं। सब कुछ दे सकते हैं," महात्मा जी बोले।
माधव देवता के मंदिर में गया और मन ही मन देवता से कुछ माँगा। उसे लगा देवता ने उसकी बात मान ली है। धीरे-धीरे माधव खेलकूंद पर अधिक ध्यान देने लगा।
एक दिन माधव ने सपना देखा। देवता सामने खड़े थे। उन्होंने माधव से कहा - "यह सही है कि मैं सब कुछ दे सकता हूँ, किन्तु जो मेहनत करते हैं, उन्हीं को देता हूँ। जो मेहनत नहीं करते, उन्हें कुछ नहीं देता। यदि मैं बिना मेहनत करने वालों को देता रहा, तो सब आलसी हो जायेंगे। तुम्हारा खेलने जाना तो ठीक है परन्तु पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दो। अगर पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया तो दूसरे बच्चे तुमसे आगे निकल जायेंगे।"
नींद से जागने पर माधव ने महात्मा जी को अपने सपने के बारे में बताया। महात्मा जी ने कहा - देवता भी मेहनत करने वाले को ही देते हैं।
माधव मन लगाकर पढ़ाई करने लगा। परीक्षाफल आया तो वह अपनी कक्षा में पहले स्थान पर था।