भाभी से विनती
अमिताभ वर्माप्यारी भाभी!
एक विनती सुनोगी?
रक्षा-बन्धन पर भैया को
फोन पर आने दोगी?
उसे लगता है उसकी
बहन बहुत बुरी है
मेरे होठों पर ज़हर
हाथों में छुरी है
पहले वह मुझे गुड़िया समझता था
आँगन की चिड़िया समझता था
पर मैं अब भी तो वही हूँ
हमारे बचपनवाली परी हूँ
भैया का स्नेह मेरे
घावों पर मरहम लगाता था
उसकी तक़रार, उसकी मनुहार
उसका प्यार बहुत भाता था
गुण कहाँ था कोई मुझमें
बस, उसे ही दिखाई देता था
कितना हँसते थे हम साथ-साथ
वह मेरे दुःख में कितना रोता था!
अब भी उसका सुख चाहती हूँ
तुम सबकी राह ताकती हूँ
अनर्थ क्या हो गया मुझसे
निरन्तर व्यर्थ आँकती हूँ
कहो तो! एक बार बात करने से
उसका क्या जाएगा?
मेरे व्याकुल हृदय का
दर्द मिट जाएगा
गिनती की होती हैं साँसें
न जाने कब तक चलेंगी
रक्षा-बन्धन पर भैया को
फोन पर आने दोगी?