15-05-2021

प्रेतात्मा और मटकी

कैलाशजी ने घबराते-सहमते दरवाज़ा खोलने की चेष्टा की, तो उसके कपाट बिना किसी प्रयास के पूरे खुल गए। छोटे लाल बल्ब के प्रकाश में धुएँ में सराबोर कमरे की हवा शराब की दुर्गन्ध, माँस की चिराइँध, लोबान की मीठी महक, फूलों की ख़ुश्बू, और हवा में तैरते सामूहिक निश्वास से बोझिल थी। सबकुछ धुँधला दिख रहा था। कैलाशजी का माथा घूमने लगा। लगा, गिर पड़ेंगे।