वहाँ छुट्टी होगी
रेखा भाटियाकाम पर मिले कुछ फ़ुर्सत के क्षणों में वह फोन पर खेल रही थी, तभी फोन की घंटी भड़भड़ाते बजने लगी। उसने झट से स्पीकर का बटन ऑन किया!
भाभी लाईन पर थी, “क्या हाल है? इधर बहुत दिनों से कॉल नहीं लगाया, सब ठीक है वहाँ पर?”
ननद ने उत्तर दिया, “हाँ! सब बिलकुल ठीक है। आप भी तो याद नहीं करते हो . . . मैंने सोचा इस बार मैं भी अपनी दुनिया पर अधिक ध्यान दूँगी।”
भाभी ने शिकायत भरे स्वर में कहा, “अरे . . . हम भी तो आपकी दुनिया का ही हिस्सा हैं, क्या बताऊँ इनकी तबियत बड़ी नरम-गरम है। वो ऐसा है . . .”
ननद ने बीच में ही बात काटते हुए तंज़ मारा, “छोड़ो भी . . . जाने दो! यहाँ इतने सालों से हम अभी तक जवान ही बने हुए हैं, कभी तबियत ख़राब नहीं होती, कोई प्रोब्लेम्स नहीं आते . . .। कपड़ों और बरतन की मशीनों की तरह सभी कुछ ऑटोमेटेड हो जाता है और हाँ अब तो आर्टिफ़िशल इंटेलिजेंस से सब कुछ हो जाता है। अगला कॉल भी आपको वहीं से आएगा!”
भाभी हँसी, “बाप रे दीदी! कहाँ की बात कहाँ लेकर चली जाती हो। अच्छा बताओ वहाँ पर मौसम कैसा है, कल तो छुट्टी होगी? कहाँ की बुकिंग की है, नई ड्रेस ख़रीद ली?”
ननद हैरानी से पूछा, “छुट्टी कैसी? प्रेज़िडेंट-डे आने में अभी तो एक हफ़्ता बचा है . . . ”
भाभी बीच में बोली, “नहीं, प्रेजिडेंट-डे की नहीं, क्यों वहाँ पर वैलेंटाइन-डे की छुट्टी नहीं होती? मैंने सोचा होती होगी, यहाँ इंडिया में तो धूम मची हुई है। सारे होटल्स बुक हो चुके हैं, बाज़ारों में भीड़ है। इन्होंने भी कहा साथ चलने के लिए लेकिन कहीं बुकिंग नहीं मिली। कई लोग तो आज शाम को ही जा रहे हैं, मेरी बहन का भी अभी कॉल आया था।”
ननद अचरज से कहा, “अरे . . . आपसे किसने कह दिया यहाँ वैलेंटाइन-डे की छुट्टी मिलती है और वैलेंटाइन-डे तो कल है!”
भाभी ने उलझन भरे स्वर में कहा, “लेकिन आया तो वहाँ से है, इसीलिए मैंने सोचा शायद छुट्टी होती होगी . . . इंडिया में तो . . .”
ननद बोली, “भाभी! पहली बात आपको यह बता दूँ, वैलेंटाइन-डे अमेरिका का नहीं है, यह यूरोप से आया है। आप दिवाली मनाते हैं तो आपको उसकी कहानी और कारण पता है, किसलिए दिवाली मनाई जाती है। क्या आपको वैलेंटाइन-डे को मनाने के पीछे की कहानी पता है? यह संत वैलेंटाइन-डे के रूप में मनाया जाता है जो एक प्रीस्ट थे। इस दिन के लिए कुछ कहानियाँ प्रचलित हैं इंसानियत से भरी। यहाँ तो लोग इस दिन भी साधारण दिनों की तरह ही कामकाज करते हैं। स्कूलों, कॉलेजों में भी यह दिन एक साधारण दिन की तरह रहता है। हाँ, बच्चे स्कूलों में कार्ड्स बनाते हैं और एक-दूसरे को और टीचर्स को देते हैं। उन्हें सिखाया जाता है एक-दूसरे की क़द्र करना और फ़िक्र करना इंसानियत की ख़ातिर। सच बताऊँ कुछ जोड़े ज़रूर वैलेंटाइन मनाते हैं, रेस्तोरां में भीड़ भी होती है लेकिन कॉलेजों में इसकी कुछ ख़ास हवा नहीं होती। एक मज़ेदार बात और है हमारा तो हर दिन वैलेंटाइन है क्योंकि बहुत व्यस्त रहते हैं। जब मौक़ा मिला बाहर खाने चले जाते हैं।”
भाभी झल्ला पड़ी, “इंडिया में तो . . .”
ननद चुटकी लेने लगी, “सही कहा इंडिया में अब बहुत ज़्यादा आम हो गए हैं पाश्चात्य के चौंचले! इंडिया की जीवनशैली में लोगों ने बिना सोचे-समझे पाश्चात्य को फ़ैशन की तरह अपना लिया है। यह सब भारत में नहीं होता था पच्चीस साल पहले जब मैं वहाँ थी और आप भी तीस सालों में पहले कभी गए हो? . . . हाहा . . . वैसे आपने कैसे जाने की सोची? आप तो . . .?”
भाभी तत्परता से बोली, “अरे कुछ नहीं, वह तो बच्चों ने ज़ोर दिया, कहा ज़माना बदल गया है।”
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