जिस दिशा में नफ़रत थी
ममता मालवीय 'अनामिका'जिस दिशा में नफ़रत थी,
वहाँ छाया था घना अँधेरा।
मन तो किया मलिन उसने,
रिश्तों को बनाया राख का ढेरा।
कर्म, कर्तव्य, त्यागे उसने,
जहाँ था नफ़रत का पहरा।
भावनायें भी टूट कर बिखर गई,
जब नफ़रत ने किया बसेरा।
संकट की घड़ी फिर आई वहाँ,
सिखाया मानवता का पाठ गहरा।
प्रेम ही सार है इस जीवन का,
उसी से होगा, एक नया सवेरा।
प्रेम दीप जलाकर मन में,
जब बना कोई अपनों का सहारा।
जिस दिशा में नफ़रत थी,
किया प्रेम ने वहीं उजियारा।
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