दो-दो हिन्दुस्तान
डॉ. सत्यवान सौरभ लाज तिरंगें की रहे, बस इतना अरमान।
मरते दम तक मैं रखूँ, दिल में हिन्दुस्तान॥
बच पाए कैसे भला, अपना हिन्दुस्तान।
बेच रहे हैं खेत को, आये रोज़ किसान॥
आधा भूखा है मरे, आधा ले पकवान।
एक देश में देखिये, दो-दो हिन्दुस्तान॥
सरहद पर जांबाज़ जब, जागे सारी रात।
सो पाते हम चैन से, रह अपनों के साथ॥
हम भारत के वीर हैं, एक हमारा राग।
नफ़रत ग़ैरत से हमें, जायज़ से अनुराग॥
खा इसका, गाये उसे, ये कैसे इंसान।
रहते भारत में मगर, अंदर पाकिस्तान॥
भारत माता रो रही, लिए हृदय में पीर।
पैदा क्यों होते नहीं, भगत सिंह से वीर॥
भारत माता के रहा, मन में यही मलाल।
लाल बहादुर-सा नहीं, जनमा फिर से लाल॥
मैंने उनको भेंट की, दिवाली और ईद।
जान देश के नाम जो, करके हुए शहीद॥
घोटालों के घाट पर, नेता करे किलोल।
लिए तिरंगा हाथ में, कुर्सी की जय बोल॥
आओ मेरे साथियों, कर लें उनका ध्यान।
शान देश की जो बनें, देकर अपनी जान॥
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- सामाजिक आलेख
-
- अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध!!
- घर पर मिली भावनात्मक और नैतिक शिक्षा बच्चों के जीवन का आधार है
- टेलीविज़न और सिनेमा के साथ जुड़े राष्ट्रीय हित
- तपती धरती, संकट में अस्तित्व
- दादा-दादी की भव्यता को शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है
- नए साल के सपने जो भारत को सोने न दें
- रामायण सनातन संस्कृति की आधारशिला
- समय की रेत पर छाप छोड़ती युवा लेखिका—प्रियंका सौरभ
- समाज के उत्थान और सुधार में स्कूल और धार्मिक संस्थान
- सूना-सूना लग रहा, बिन पेड़ों के गाँव
- सोशल मीडिया पर स्क्रॉल होती ज़िन्दगी
- साहित्यिक आलेख
- दोहे
-
- अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
- आशाओं के रंग
- उड़े तिरंगा बीच नभ
- एक-नेक हरियाणवी
- कायर, धोखेबाज़ जने, जने नहीं क्यों बोस!!
- क्यों नारी बेचैन
- गुरुवर जलते दीप से
- चलते चीते चाल
- टूट रहे परिवार!
- दादी का संदूक!
- देख दुखी हैं कृष्ण
- दो-दो हिन्दुस्तान
- पिता नीम का पेड़!
- फीका-फीका फाग
- बन सौरभ तू बुद्ध
- बैठे अपने दूर
- मंगल हो नववर्ष
- रोम-रोम में है बसे, सौरभ मेरे राम
- सहमा-सहमा आज
- हर दिन करवा चौथ
- हर दिन होगी तीज
- हिंदी हृदय गान है
- सांस्कृतिक आलेख
- ललित निबन्ध
- पर्यटन
- चिन्तन
- स्वास्थ्य
- सिनेमा चर्चा
- ऐतिहासिक
- कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-