चलते चीते चाल
डॉ. सत्यवान सौरभमाना चीते देश मेंं, हुए सही आयात।
मगर करेगा कौन अब, गदहों का निर्यात॥
आये चीते देश में, ख़र्चे ख़ूब करोड़।
भूखी गाय बिलख रही, नहीं मौत का ओड़॥
सौरभ मेरे देश मेंं, चढ़ते चीते प्लेन।
गौ मात को जगह नहीं, फेंक रही है क्रेन॥
भरे भुवन में चीखती, माता करे पुकार।
चीतों पर चित आ गया, कौन करे दुलार॥
क्या यही है सभ्यता, और यही संस्कार।
माँग गाय के नाम पर, चीता हिस्सेदार॥
ये चीते की दहाड़ है, गुर्राहट; कुछ और।
दिन अच्छे हैं आ गए, या बदल गया दौर॥
मसलों पर अब है नहीं, आज देश का ध्यान।
चिंता गौ की कर रहे, कर चीता गुणगान॥
देख सको तो देख लो, अब भारत का हाल।
गैया कब तक अब बचे, चलते चीते चाल॥
कौन किसी का साथ दे, किस विध ढूँढे़ राम।
गाय धरा पर जब करे, चीते खुल आराम॥
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