ज़िंदगी एक सफ़र है सुहाना

01-07-2021

ज़िंदगी एक सफ़र है सुहाना

ममता मालवीय 'अनामिका' (अंक: 184, जुलाई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

बाहर का शोर और लड़ाई तो सबको दिख जाती है।

मगर अपने अंदर का शोर और अंदर चल रही जंग को, सिर्फ़ वही इंसान महसूस कर सकता है, जो उससे जूझता है।

ज़िंदगी में पैसा, इज़्ज़त, नाम और शोहरत कमाने वाले भी अक़्सर ज़िंदगी से हार जाते हैं। क्योंकि वो अपने अंदर की जंग नहीं जीत पाते।

ज़िंदगी के इन चंद पलों में अपनों को थोड़ा वक़्त दें।

उनके दिल को समझें। क्योंकि कोई भी इंसान कितनी भी बड़ी हस्ती क्यों न हो, भले ही उसे पूरी दुनिया जानती हो, मगर वो उम्मीद सिर्फ़ अपनों से ही करता है।

अपनों के मुस्कुराते चेहरे देखकर, उनकी ख़ुशी का अनुमान लगाने से बेहतर है कभी-कभी उनके मन को तलाशा जाए। अक्सर बहुत हँसने और मुस्कुराने वाले लोग ही अपने अंदर एक तूफ़ान समेटे हुए चलते हैं।

ज़िंदगी एक सफ़र है जिसमें कई पड़ाव ऐसे आते हैं,जहाँ सारे रास्ते अंधकार में डूबे प्रतीत होने लगते हैं। उस वक़्त हिम्मत हारने से बेहतर है, अपने मन की रोशनी को जलाना।

वरना "जिंदगी तो एक सफ़र है सुहाना, यहाँ कल क्या हो किसने जाना"।
 

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