संकल्प (त्रिलोक सिंह ठकुरेला)
त्रिलोक सिंह ठकुरेलाउठ उठ गिर गिर गिर गिर उठ उठ,
गिरि की गोदी से निकल निकल।
मन में अविचल संकल्प लिये,
बहती नदिया कल-कल, कल-कल॥
पथ में काँटे या फूल मिलें,
चाहे पत्थर राहें रोकें।
चलती नदिया अपनी धुन में,
कितनी भी बाधाएँ टोकें॥
रुकती न कभी, थकती न कभी,
बढ़ती जाती हँसती गाती।
दायें मुड़ती, बायें मुड़ती,
आख़िर अपनी मंज़िल पाती॥
समझाती नदी सदा सबको,
तन मन में नई उमंग भरो।
श्रम से सब कुछ मिल जाता है,
तुम भी मन में संकल्प करो॥