ऋतुराज पर हाइकु

29-04-2016

ऋतुराज पर हाइकु

पुष्पा मेहरा

१.
खोले किवाड़
सूरज ने अपने
झाँकी है धूप।
२.
हर्षित नभ
फूलों की घाटियों में
पुलक भरा।
३.
भौरों की टोली
पी-पी फूलों का रस
मद से भरी।
४.
धरा बिछाए
हरियाला गलीचा
सुस्ताती धूप।
५.
फूली सरसों
झूम रही बालियाँ
हैं रोमांचित।
६.
भीनी सुगंध
भिगोए अंग-अंग
गेंदा नवेला।
७.
धरा रूपसी
ओढ़े पीली चुनरी
रीझी तितली।
८.
काम को देख
हवा रचती छंद
कोयल गाए।
९.
आम्र विटप
बौरों के तीर लिए
हवा से खेलें।
१०.
बसन्त आया
कोहरा पट खोल
रवि मुस्काया।
११.
बुझे अलाव
फाग के स्वागत में
फूला पलाश।
१२.
सेमल जगा
हाथों हाथ सँभाले
मृदु कलियाँ।
१३.
नाचें तितली
ओढ़ रँगी चुनरी
मधु घट पे।
१४.
बहुरे पाखी
हँसे कमल दल
झूमे भ्रमर।
१५.
गूँजा गगन
हर्षाते उड़ छाए
प्रवासी पाखी।
१६.
महका माघ
आया संक्रान्ति काल
भागती शीत।
१७.
सूर्य किरणें
हँस-हँस सजातीं
धरा की वेणी।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हाइबुन
कविता-मुक्तक
कविता
कविता - हाइकु
दोहे
कविता - क्षणिका
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में