बड़े गुरुजी पढ़ा रहे हैं,
कूकर माने कुत्ता।
राजा का कूकर तो हर दिन,
भौंका करता भारी।
आम जनों को डरवाने की,
उसको मिली सुपारी।
रहम करे कुछ ख़ास जनों पर,
कहा गया अलबत्ता।
राजा दर राजा बदले तो,
सबके कूकर भौंके।
आते थे सब रोज़ सड़क पर,
राजमहल से हो के।
रोटी के टुकड़ों का इन पर,
ताना रहा है छत्ता।
राजाओं के कूकर के गुण,
होते अजब निराले।
कुछ हैं पूँछ हिलाने, कुछ हैं,
भौं-भौं करने वाले।
वफ़ादार कूकर को मिलता,
खाना अच्छा-अच्छा।
बहुत बढ़िया रचना बधाई हो