हम हिमालय
त्रिलोक सिंह ठकुरेलाहम हिमालय हैं, हमें परवाह कब है।
भले टूटें पर झुकें यह चाह कब है॥
प्यार की नदियाँ हृदय से बह रही हैं।
घृणा का मन में कहीं प्रवाह कब है॥
लाख तूफां आये हैं फिर भी अडिग हैं।
थिर सदा, गम्भीरता की थाह कब है॥
बुज़दिली की बात मत करना कभी।
वीर हैं हम, दासता की आह कब है॥
शिखर उन्नत हैं सदा, हम हर्षमय हैं।
आँसुओं की ओर अपनी राह कब है॥