चेहरा मेरा जला दिया

01-02-2020

चेहरा मेरा जला दिया

ममता मालवीय 'अनामिका' (अंक: 149, फरवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

चेहरा मेरा जला दिया,
क्या रूह जला पाओगे क्या?
ख़ुद को नारी के रक्षक कहने वाले,
ख़ूबसूरती की लालसा में,
उसी के भक्षक बन जाओगे क्या?


कहते हो, चाहत हूँ मैं तुम्हारी,
तो इश्क़ में इतने गिर जाओगे क्या?
तेज़ाब से मेरी ज़िंदगी जला कर,
इस जहाँ से मोहब्बत को,
सरेआम नीलाम कर जाओगे क्या?


सपने मेरे जला दिए,
आवाज़ दबा पाओगे क्या?
ख़ुद को शान से पुरुष कहने वालो,
केवल जिस्म की लालसा में,
पुरुष समाज कलंकित कर जाओगे क्या?


कहते हो, मैं हूँ सिर्फ़ तुम्हारी,
तो अपने अहंकार में. . .
इतने गिर जाओगे क्या?
तेज़ाब से मेरा जिस्म जला कर,
मुझे सिर्फ़ एक भोग की,
वस्तु बना जाओगे क्या?


घर मेरा जला दिया,
ख़ुद का घर बचा पाओगे क्या?
आज एक पिता रो रहा,
अपनी बेटी ही दुर्दशा पर,
कल ख़ुद की बेटी से -
नज़रें मिला पाओगे क्या?


कहते हो, तुम ख़ुद को मर्द,
तो अपनी मर्दानगी में 
इतने गिर जाओगे क्या?
तेज़ाब से मेरी ज़िंदगी जला कर,
आख़िर कब तक एक औरत पर,
ऐसे ज़ुल्म ढाते जाओगे क्या?

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