ज़माने में जब भी

15-09-2023

ज़माने में जब भी

ललित मोहन जोशी (अंक: 237, सितम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

ज़माने में जब भी किसी से किसी की बुराई हुई
ज़माने में तब तब क्या ख़ूब उसकी हँसाई हुई
 
यहाँ हमेशा से ही बुरे को भला कहा गया है
इसीलिए तो यहाँ पर बेगुनाह की पिटाई हुई
 
जब से लग गया है रोगों का मेला मुझमें 
तब से हर मर्ज़ की मुझे खानी दवाई हुई
 
किसी की बद्दुआ मुझ पर असर कर गई
तभी मेरी सारी दौलत चली गई कमाई हुई
 
अब मैं बहुत ही चुप चाप सा रहता हूँ यहाँ
यानी उसकी अब किसी और से सगाई हुई
 
वो यादें वो बातें उसकी बेजान सी क़समें
सारी मेरी मोहब्बत चली गई कमाई हुई
 
यहाँ झूठ महलों में है तो सच सड़कों पर है
ऐ ख़ुदा बता ये कैसी यहाँ तेरी ख़ुदाई हुई

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