ललित मोहन जोशी – दोहे – 001
ललित मोहन जोशी
1.
सखा सुदामा सा मिला, भले करम की बात।
पाकर तुमको धन्य हूँ, क्यों पूछे फिर ज़ात॥
2.
साँई अपना लीजिए, मुझ पागल को आज।
पूरे अब तो कीजिए, मेरे अटके काज॥
3.
डर लगता है सो लगे, बस इतना हो ध्यान।
दुख होगा बस चार दिन, मंज़िल का हो ज्ञान॥
4
कोई अपना है नहीं, सब मतलब का खेल।
पाला क्यों ये है अहम, जब होना मटि मेल॥
5.
नित दर्शन कर आपका, बस इतना मिल जाय।
इतनी है बस प्रार्थना, दो रोटी सुख पाय॥
6.
ग्रन्थों में मन है नहीं, मनुज खो रहा ज्ञान।
मर्यादा श्री राम सी, नारी का हो मान॥
7.
दो कविताएँ क्या लिखीं, बन बैठे कविराज।
जीवन को सींचा नहीं, ज्ञान दे रहे आज॥
8.
तन से सुंदर हो गए, पर मन कलुषित आप।
नश्वर काया के हुए, अब क्यों हो सन्ताप॥
9.
हर दिन तन को जी रहे, मन का ना है ध्यान।
तन से कुछ भी ना मिले, मन मोती की खान॥
10.
मात पिता को नमन कर, करते रहना काम।
जो चरणों में सिर रखे, तो पग पग हो नाम॥
11.
मंदिर मंदिर मैं फिरूँ, तन को लेकर साफ़।
मन पापी है क्या करूँ, भगवन कर दो माफ़॥
12.
एक बार में ना मिले, आना है सौ बार।
हर कण में जो प्रभु दिखे, तब भवसागर पार॥