तुझ को हम पाने
ललित मोहन जोशी
22 22 22 22 22
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
ख़ुद में ही तुझ को हम पाने लगे थे
ताउम्र हम यही भूल करने लगे थे
मलाल क्या करते अपने मुक़द्दर का
बस हम हर किसी का दिल रखने लगे थे
होना क्या बस रोना और रोना था
तुझको ये आँसू भी पानी से लगे थे
तेरी हँसी के ख़ातिर ख़ुद को बदला
बस हम ऐसी भूल कर के माने थे
तेरा ग़लत होकर भी ख़ुद को ही सही
सो हम सही होकर भी बुरे लगे थे
फिर कुछ ऐसा घटा 'ललित' अँधेरे से
ख़ुद को हम रोशनी में लाने लगे थे