तुम पास मेरे आ रहे थे
ललित मोहन जोशी
22 22 22 22 22 2
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
तुम पास मेरे आ रहे थे अब किधर गए
शायद हम तेरी नज़रों से अब उतर गए
मैंने यारों से बोला अब वो किसी की हुई
पर सब इस बात से मेरी अब मुकर गए
तुमने बात तो मेरे घर को सजाने की थी
पर तुम तो दहलीज़ पे ही अब मुकर गए
हम सभी से तो तपाक से ही मिलते थे
पर इश्क़ करके तुमसे ही हम बिखर गए
ये नज़रें ढूँढ़ती हैं जाने वो किधर गए
यानी के वो इधर गए या अब उधर गए
सोचता हूँ मैं तन्हा रातों में अक़्सर ये
हम उस बेवफ़ा को ही समझ अब क़मर गए