सबकी नज़रों का सवाल
ललित मोहन जोशी
22 22 22 22 22 2
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
मैं अब सबकी नज़रों का सवाल बन गया हूँ
यानी ख़ुद इन सवालों का जवाब बन गया हूँ
मैं अब बहुत ज़्यादा चुप सा रहने लगा हूँ
यानी अब मैं पत्थर ज़ुबान बन गया हूँ
मुझको क्यों महफ़िल में बुलाते हो अपनी
तुम्हारी महफ़िल का टूटा जाम बन गया हूँ
अपने मस’अले पे हर कोई रो दिया बहुत
हर ग़म में मैं सब का यावर बन गया हूँ
मुझे समंदर सा दर्द दिया यहाँ लोगों ने
पर हर दर्द का चाँद जवाब बन गया हूँ
जब से हो रहा हूँ रूबरू नए जहाँ से
तबसे इस जहाँ में एक बुरा ख़्वाब बन गया हूँ