वो नए ताल्लुक़ में इस क़द्र

15-08-2023

वो नए ताल्लुक़ में इस क़द्र

ललित मोहन जोशी (अंक: 235, अगस्त द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)


वो नए ताल्लुक़ में इस क़द्र नया लगने लगा है
मेरा सादापन अब उसे तल्ख़ लगने लगा है
 
वो अपनी कहानी को बदलने में लगा है
कुछ नए किरदारों को जो बुलाने लगा है
 
और कहानी में इस क़द्र बसाने लगा है
मेरा नामों निशान जो मिटाने लगा है
 
मेरी ख़ामोशियों का ये फ़लसफ़ा है
ज़माना मुझे अब बीमार समझने लगा है
 
जिसको हमने मंज़िल तक पहुँचाया है
आज वही हमको रस्ता बताने लगा है
 
अच्छाई भी अपना रंग दिखायेगी ‘ललित’
सो अब सब भूल बस काम पर दिल लगने लगा है

5 टिप्पणियाँ

  • 8 Aug, 2023 02:47 PM

    वो नए ताल्लुक़ में इस क़द्र नया लगने लगा है मेरा सादापन अब उसे तल्ख़ लगने लगा है बहुत ही खुबसूरत लाईन हैं ये

  • 8 Aug, 2023 10:27 AM

    मेरा सादापन उसे अब तल लगने लगा है

  • 7 Aug, 2023 11:04 PM

    बहुत सुंदर नज्म लाजवाब

  • 7 Aug, 2023 10:59 PM

    जीवन के पहलुओं और सादगी को बखूबी कविता के माध्यम से उभरने का सार्थक प्रयास किया है आपने और साथ ही मंजिल वाली पंक्ति दिल को छू गई सरहनीय कविता

  • 6 Aug, 2023 07:29 PM

    सादापन हर किसी को नहीं भाता, भाएगा भी तो कुछ देर के लिए, उसके बाद आपको एहसास होगा कि वो आपको बदलने लगा है। बहरहाल कहना बस इतना ही है कि यह एक पूर्ण नज़्म है। शुरुआत अंत खूबसूरत है ऐसा लगा जैसे सवाल को हल कर दिया गया है।

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